जब इन्सान की आशाओं के दरवाज़े हर और से बँद हो जाते है तो तब सिर्फ एक ही दरवाज़ा खुला होता है और वो भगवान के घर का दरवाज़ा इसलिये भगवान पर आस्था रखने वालों के प्रस्तुत है मेरी यह नई रचना
राम नाम की धुन
मुश्किलों से ऐ इन्सान
तू क्यों घबराता है।
जब देने वाला ऊपर बैठा
वो विश्व विधाता है।
सबकुछ वही देगा
कोई और नहीँ क्योंकि
वो देख रहा है।
हर इक को चारों और से
जानता है वो कि
कब किस को रोकना है।
और किस को घुमाना है।
किस की तरफ़ किस और से
रख विश्वास उस पर
उसकी कृपा दृष्टि पर
किसे मालूम कि कब
तुझ पर भी बरस जाए
मुसीबतों का पहाड़ जो टूटा तुझ पर
तू इनको देखने को ही तरस जाए
तेरी तन्हाईयाँ महफ़िल बन जाएंगी
मंज़िल दौड़ कर तेरे पास आएगी
उदासी जो चेहरे पर तेरे छाई
वो दूर भाग जाएगी
हर पल उजाले की ईक नई किरण
भीतर तेरे उठ जाएगी
हो जाएँगे तेरे सारे हल
आज नहीँ तो कल
बीत जाएँगे मुसीबतों के पल
कभी तो मिलेगा तुझे भी ठोस तल
बरसेगा उसकी दया का जल
बस तू राम नाम की धुन मे चला चल
हितेश वर्मा, जयहिन्द