छत्तीसगढ़ का ट्वीन-सिटी भिलाई, जहाँ ढाई विधानसभा क्षेत्र भिलाई नगर, वैशाली नगर, और दुर्ग-ग्रामीण का शहरी क्षेत्र जो तीन नगर निगम, दुर्ग, भिलाई और भिलाई-तीन चरोदा के अंतर्गत है । या कह सकते हैं, छ: लाख की आबादी । अन्य ग्रामीण क्षेत्र जो लगे हैं वहाँ, विधानसभा क्षेत्र हैं दुर्ग-ग्रामीण का ग्रामीण क्षेत्र, दुर्ग शहर, अहिवारा, साजा, पाटन, और गुण्डरदेही । भिलाई में पेयजल संकट, घनी आबादी वाले क्षेत्र व झुग्गी बस्तियों में बारहों महिने रहती हैंं । जहाँ नगर निगम व भिलाई इस्पात संयंत्र प्रशासन का संयुक्त अभियान भी चलता है ।
फिर भी, बहुत सी बातें ऐसी होती है जहाँ प्रशासन, नजर अंदाज कर जाते हैं, या फिर समस्या सुलझा नहीं पाते । चुंकि इस समय भिलाई में जल संरक्षण माह चल रहा है, हमारी नजर भिलाई के ग्लोब चौक के पास, उनके पोस्टर पर पड़ी ; और ठीक नीचे बह रही पानी की श्रोत पर ! जो नगर को पेयजल के लिए सप्लाई की जाने वाली अंडरग्राउंड पाइप से लीकेज होकर, निरंतर चलती रहती है ? जिसके संबंध में पूछने पर भी जवाब नहीं मिलता ।
आज नही, पर कुुुछ दिनों बाद राजनीति गर्म हो जायेगी है ! क्योंकि, गर्मी बढ़ने लगेगी और मुद्दा होगा पानी ? किसी के स्वागत की तैयारी पर बहा दिए गए पानी ! तो सूखे पानी की ओठ में किसी ने ले ली सेल्फी ? अब, क्या करे ; आई पी एल भी निशाने पर आ ही जाता है, जैसे पिछले साल हुआ था ।
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देश के नेताओं का चाल-चरित्र- चेहरे उसी समय उजागर होते हैं जब, कोई बुनियादी मुद्दा सामने आता है । इस तरह एक बड़ा मुद्दा देश के सामने आज भी है । जिस पर आज ध्यान नहीं दिया गया तो, निश्चित ही आने वाले एक महीने बाद ही नहीं ; पूरी भविष्य खतरे में पड़ सकता है । यह है पानी । कहते हैं “जल-ही- जीवन है” या “जल है तो कल है” ।
लेकिन, पानी को लेकर भी कई प्रकार की भ्रांतियां बनाई जाती रही है , “यह पीने योग्य पानी नहीं है” , “वह उपयोगी पानी नहीं था ।” तो क्या इसीलिये बहा दिया जाये पानी ? लेकिन, पानी से ही पानी मिलता है यह, इन बुद्धिजीवी वर्ग को कौन समझाये जो इस तरह के बयानबाजी करते हैं ! भारत के शहरों में जरूरत से ज्यादा भीड़ है ।
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जहाँ पानी को लेकर, पेयजल और निस्तारी की समस्या आम हो गई है । जहाँ पानी के बदले नागरिकों से सिर्फ रुपये ही मिल सकता है । तो क्या रुपये-पैसे से जल श्रोत बढ़ाया जा सकता है ? यह एक बुनियादी प्रश्न है । क्योंकि, शहरी घनी आबादी क्षेत्रों में पानी की स्टोरेज कैसे हो सकता है ! सरकार इन रुपयों से पानी बढ़ाने का प्रयास कैसे करेगा ? जहाँ वैसे भी एक-एक इंच जगह महत्वपूर्ण माना जाता है वहाँ तालाब, बांध का निर्माण कैसे होगा !
शहरों को बसाते समय वाटर हार्वेस्टिंग या घरेलू सोक्ता का निर्माण नहीं किया गया । तब जल-श्रोत कैसे बढे़गा, घरों का गंदा पानी बड़ी-बड़ी नालियों से बहता हुआ शहर के बाहर निकल दिया जाता है । यदि वाटर हार्वेस्टिंग या घरेलू सोक्ता होता तो पानी जमीन के नीचे जाकर जलस्तर बढ़ाने में पूरी तरह से सहायक होता । जो आज तक नहीं हुआ ।
अब दूसरी बात, जहाँ देश का अस्सी प्रतिशत भूमि गाँवों में बसता है । जहाँँ ग्रामीण क्षेत्रों में भी पानी की कमी देखी जा सकती है । यहाँ आज गलियों का सिंमेंटीकरण कर विकास गढ़े जा रहे हैं । यहाँ, बारिश के मौसम में गलियों का पानी बहते हुए, गांव से निकलकर नालों और नदियों में समाहित हो जाता है ।
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क्योंकि, गांव के गलियों से निकलते हुए पानी की दिशा ताल तालाबों और बाँधों के तरफ नहीं किया गया । पानी नहीं रुके, गांव के तालाब, सूखे ही रह गये ; अब कुंआ, नलकूप को कैसे मिलेगा जल-श्रोत ? निस्संदेह वहॉं पर पानी संरक्षण के कोई उपाय कभी किए ही नहीं गये । और न ही, घरेलू सोक्ता या शासकीय “वाटर हार्वेस्टिंग” जैसे पानी संरक्षण के कोई कार्यक्रम ही चलता है, यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा ! क्योंकि, ऐसे क्षेत्रों पर जहाँ पानी की कमी हो जल स्तर खत्म हो गया हो, वहाँ, न ही, बांध या तालाब मिलेंगे और ना ही कोई कुंआ । और मिले भी तो सूखा ।
देश के ऐसे ही कई राज्यों के क्षेत्र हैं, जहाँ विकास के नाम पर गांव और शहर के गलियों को गिट्टी-सिमेंट से मढ़ा जा रहा है । जहाँ “वाटर-लेबल” में भारी गिरावट हो गई है । क्या कभी ऐसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया है । या ध्यान में तो आ रहा है, पर गलियों का विकास कैसे करें ? क्या अन्य उपाय नहीं अपनाये जा सकते ! पानी को लेकर यह तो सिर्फ एक विषय का छोटा सा अंश मात्र है ।
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अन्य विषयों को देखें तो, एक उपन्यास लिखा जा सकता है । ऐसे ही अनेकों प्रश्न है, यहाँ जितने ही प्रश्न होंगे, उतने ही उत्तर भी मिलेंगे । लेकिन, उत्तर ढूंढेगा कौन ? क्योंकि, राजनीति है ! इसलिए राजनीति भी “पानी-ही- पानी” है । जहाँ पानी एक बुनियादी समस्या बन रही है वहीं राजनीति भी इस समस्या का समाधान ढूंढने में असफल हो गया है । यदि, इसी एक विषय के इस छोटे से अंस, जो समस्या है, निपटा दिया जाएगा ; तो निश्चित ही आने वाले कई वर्षों तक जलसंकट को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है ।
[स्रोत- घनश्याम जी.बैरागी]