चलो आज एक वृक्ष लगाए
बची हुई मानवता को थोड़ा हम भी समझाए,
मौसम को दोष, औरो को कोसना
क्यों न अपने ही विनाश को रोकना.
ऑक्सीजन की चर्चा
च्लोरोफ्लोरो कार्बन पे खर्चा,
क्यों न अब काम करें
कागज़ों का परचा.
एक एक बूँद से बांटा सागर है
सागर है,
सागर है पर पीने का पानी,
मिलना दुर्भर है!
बेतरतीब सी ऋतुएँ हैं
कोई आती है,
कोई जाती है
जाते जाते लौट आती है.
सुरसा से मुख सा बढ़ रहा कूड़े का ढेर
बहुत हो चुक्का अब न करो देर
सम्हाल जाएं यदि चाहते हैं खुशहाली
वरना न जाने कैसी ए दीवाली
ट्यूबरक्लोसिस बढ़ता जायेगा
वह वक़्त दूर नहीं जब सूर्य बस अल्ट्रावायलेट बरसायेगा
कैंसर ही कैंसर फिर हमें नज़र आएगा
अस्पताल काम और
गृह बस रोगी बन जायेगा.
चलो आज एक वृक्ष लगाए
एक पौधा ही सही
पर कुछ बदलाव तो आए.
कृपया अपने भविष्य को लेकर सम्हल जाये, जिस तरह पर्यावरण अपना संतुलन खो रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ज़मीन डूब रही है. रोग बढ़ते जा रहे हैं. सम्हाल जाएं!
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न नमिता कौशिक ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com
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