भारतीय सभ्यता और संस्कृति रंगों और त्यौहारों से परिपूर्ण मानी जाती है। वर्ष भर चलें वाले अलग-अलग धर्म और भाषा के त्यौहार पूरे भारत को एक ही रंग में रंगते हैं और यह रंग है खुशी का रंग। बरसात के बाद जब सर्दी की दस्तक सुनाई देती है तब हिन्दू धर्म को मानने वाले शारदीय नवरात्रि का पर्व बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। लगभग सारे भारत में अलग-अलग नाम और रूप से मनाया जाने वाला यह त्यौहार देवी दुर्गा की पूजन के साथ मनाया जाता है।शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा के नौ रूप और नौ नाम, नौ दिन तक पूजे जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की यही वो समय है जब मौसम में परिवर्तन होने के कारण विभिन्न रोग भी अपना सिर उठाने लगते हैं। इस कारण यह समय न केवल श्रद्धा और भक्ति का है बल्कि रोग और बीमारी से अपने को बचा कर स्वस्थ रखने का भी है।
शायद ही कुछ लोग इस बात को जानते होंगे की आयुर्वेद में कुछ ऐसी औषधियों को दुर्गा का प्रतिरूप बताया गया है। ये नौ औषधियाँ दुर्गा और शक्ति का स्वरूप होने के कारण दुर्गाकवच के नाम से भी जानी जाती हैं। एक शक्त कवच की भांति इन औषधियों में व्यक्ति को विभिन्न रोगों से बचाकर रखने की शक्ति होती है। आइये देखें नौ दुर्गा औषधि कवच क्या हैं।
- शैलपुत्री : हरड़
नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री का है जो पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण दिया गया है। औषधि रूप में माँ दुर्गा हरड़ या हरीतकी के रूप में विराजमान हैं। अनेक रोगों में काम आने वाली हरड़, आयुर्वेद की प्रमुख औषध मूल रूप से यह सात प्रकार ही होती है। हरड़ को यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी अनेक रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। एक अच्छे विष्णुरोधक के रूप में इसे कंजक्तिवाइटस, गैस संबंधी परेशानी और पुराने बुखार, साइनस, एनीमिया और हिस्टीरिया आदि में प्रयोग किया जाता है ।
- ब्रह्मचारिणी: ब्राह्मी
नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है। देवी का यह रूप महादेव को पाने के लिए की गयी गहन तपस्या के कारण दिया गया था। औषध विज्ञान में ब्राह्मी को देवी के इसी रूप का प्रतिरूप माना जाता है । मानसिक बल देने वाली इस औषधि को मस्तिष्क का टॉनिक भी कहा जाता है। अधिकतर ब्राह्मी का उपयोग मस्तिष्क संबंधी परेशानियों जैसे याददाश्त बढ़ाने और मजबूत करने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर के रक्त से संबन्धित रोग, गैस और मूत्र से जुड़ी परेशानियाँ आदि के लिए भी ब्राह्मी का उपयोग किया जाता है।
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- चंद्रघंटा : चंदूसुर
दुर्गा शक्ति का तीसरा रूप चंद्रघंटा है जो माँ के माथे पर अर्धचंद्र के विराजमान होने के कारण दिया गया है। औषधि रूप में माँ का यह रूप चंदूसुर में विद्यमान है। दरअसल यह एक प्रकार का पौधा है जो देखने में धनिया जैसा लगता है और इसी कारण इसकी सब्जी भी बनाई जाती है। इस जड़ी-बूटी का प्रयोग मोटापा दूर करने, शारीरिक बल में वृद्धि करने और दिल संबंधी बीमारियों को दूर करने में सफलता पूर्वक किया जाता है ।
- कुष्मांडा : कुम्हड़ा
आदि शक्ति का चौथा स्वरूप अपनी स्मित से ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण कुष्मांडा कहलाता है। औषध रूप में माँ का यह रूप कुम्हड़ा या पेठा में दिखाई देता है। व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक बल बढ़ाने के लिए इसका उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। हृदय संबंधी परेशानियाँ, बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को कम करना, शरीर में ठंडक देना और मूत्र वर्धी औषधि के रूप में इसका उपयोग किया जाता रहा है । पेट संबंधी परेशानियाँ और शुगर को कंट्रोल करते हुए पित्त को भी नियंत्रित करता है। मानसिक शक्ति को बढ़ाने में तो यह रामबाण है।
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- स्कन्दमाता : अलसी
देवी दुर्गा का पाँचवाँ रूप स्कन्दमाता का है। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को स्कन्द के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए यहाँ माँ को स्कन्दमाता भी कहा जाता है। देवी दुर्गा का यह रूप अलसी नाम की औषधि में पाया जाता है। पेट की गर्मी से उत्पन्न होने वाले रोग जैसे वात, पित्त और कफ जैसे रोगों में अलसी के उपयोग से तुरंत आराम आता है। नवीनतम खोज के अनुसार अलसी में ओमेगा 3 और फाइबर की अधिकता होने के कारण इसमें विभिन्न जटिल रोगों से भी लड़ने की शक्ति इसमें है।
- कात्यायनी: मचिका :
कात्यायन ऋषि के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण माँ का छटा रूप देवी कात्यायनी का है। आयुर्वेद में माँ का यह रूप मचिका के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग कफ, पित्त और गले के रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है।
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- कालरात्रि : नागदौन
शत्रुओं का नाश करने वाला देवी का सातवाँ रूप कालरात्रि या शुभंकरी का भी है । आयुर्वेद में नागदौन के नाम से देवी दुर्गा का यह औषध रूप मन और मस्तिष्क के रोगों के उपचार में काम आता है । अगर इसका रोज सेवन किया जाए तो मौसमी बीमारियाँ तो शरीर के पास ही नहीं आतीं है।
- महागौरी : तुलसी
देवी दुर्गा का आठवाँ स्वरूप गौरी का माना जाता है। औषध रूप में देवी दुर्गा का यह रूप तुलसी के पत्ते में होता है। प्राचीन काल से तुलसी का पौधा हर घर में जीवन दायी औषध के रूप में लगाया जा रहा है। छोटे-मोटे बुखार से लेकर अनेक गंभीर रोगों में भी तुलसी का उपयोग बेहिचक किया जाता है। तुलसी के पत्ते के रोज सेवन से शरीर का रक्त शुद्ध होता है और हृदय रोग की संभावना को भी समूल नष्ट होता है ।
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- सिद्धिदात्री : शतावरी
माँ शक्ति का नवमं रूप सिद्धिदात्री का है। आयुर्वेद में दुर्गा का यह रूप शतावरी में पाया जाता है। इसके नियमित सेवन से बुद्धि को बल मिलता है और वीर्य में शक्ति आती है। इसके अलावा रक्त को शुद्ध करके रोग मुक्त करता है और पित्त का भी नाश करता है। हृदय को मजबूती देने वाली इस औषधि का सेवन हर मौसम में किया जा सकता है।