कहते है की मां सृष्टि की वो अनमोल रचनाओं में से एक है जिसके लिए स्वयं भगवान को अपने हाथों को जोड़ना पड़ता है। पर क्या वाकई में आज भी हम इन्हीं विचारों के साक्षी बने हुए हैं जी हां क्योंकि हम आज भी यही कहते आय है की पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।
इसी विचारों के सहारे हम आज भी चल रहे है पर में उन सभी लोगों से पहले ये जरूर पूछना चाहती हूं कि क्या इस कथन को बनाने से पहले एक बार कलयुग में मां की कल्पना की थी। आज की मां भले ही अपनी कोख से जन्मे अपने बच्चे का बुरा नहीं चाहती, पर वही मां अपने ही अंश के साथ हो रही परेशानियों को समझने में इतना क्यों अनजान हो जाती है।
क्यो वही मां अपनी बेटी की शादी ना होने पर उसे सुनाती है वो भी आज के दौर में जब लड़कियां खुद कुछ बनने का जज़्बा रखती है। यहां तक की उम्र निकलने का हवाला देकर उसे अपने ही सपनों को मारने के लिए विवश कर देती है। और इतना करती है कि अपनी जिस संतान को पैदा करने में उन्हें दूसरे जन्म का एहसास हुआ था उसी के इस जन्म को मिटाने में लगती है।
और फिर जब कही ऐसा हो जाएगा तो कोसेगी अपने को, पर वो कोसना कैसा जिसमें आपकी बिटिया का भविष्य ही दांव पर लग जाए।
इसलिए आने वाले मदर डे पर एक बेटी आज उन सभी माओं को कहना चाहती है कि
एक बेटी हूं मे तेरे अंगन की
कोई पौधा नहीं
जिसके जज़बातों ल
वास्तव में एक बेटी जैसा ही जीवन जीना चाहती हु