क्या वाकई में सुलझ गया तीस्ता जल विवाद ?

तीस्ता विवाद को बढ़ते देखते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने बांगलादेश की पीएम शेख हसीना सेे संयुक्त वार्ता करने के लिए अपना रजामंदी हाल ही में दी थी, जिसको लेकर शनिवार को वेस्ट बंगाल की राजधानी कोलकत्ता में ममता बेनर्जी ने शनिवार शाम ताज बंगाल होटेल में बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ इस मसले पर निजी बातचीत की।

क्या वाकई में सुलझ गया तीस्ता जल विवाद ?

आपको बता दे कि मोदी सरकार काफी समय से इस मसले को लेकर काफी समय से परेशान थी, हो सकता है पश्चिम बंगाल की सीएम के जरीए इस कदम से मोदी सरकार राहत की सास ले ।

मिली जानकारी के अनुसार इस बैठक की बातचीत को दोनों नेताओं ने सार्वजिक ना करने की बात कही है ।

क्या है तीस्ता जल विवाद 

1815 में एंग्लोनेपाली युद्ध के बाद तीस्ता को ले कर नेपाल के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एक संधि हुई थी, जो सुगौली संधि के नाम से जानी जाती है। नेपाल के राजा ने मेची और तीस्ता नदी के बीच के तराई भूखंड को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया था। विवाद की शुरुआत 1971 में बंगलादेश बनने के साथ हुई । गौरतलब है कि तीस्ता नदी पाहुनरी ग्लेशियर से निकल कर उत्तर में सिक्किम और उत्तर बंगाल से हो कर बंगलादेश तक जाती है। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से तीस्ता का प्रवाह बंगलादेश के रंगपुर जिले में पहुंचता है। अंत में यह ब्रह्मपुत्र नदी में जा कर मिल जाती है।

1972 में संयुक्त नदी विवाद को लेकर एक आयोग का गठन किया गया था। जिसने 1983 में भारत और बंगलादेश के बीच तीस्ता जल बंटवारे पर एक तदर्थ समझौता हुआ।इसके तहत दोनों देशों के बीच क्रमश: 39 प्रतिशत और 36 प्रतिशत पानी का बंटवारा हुआ।  लेकिन 30 सालों के बाद नए द्विपक्षीय समझौते का विस्तार किया जाना था तो दोनों देशों के लिए बराबरी में यानी 50 प्रतिशत जल बंटवारे का प्रस्ताव रखा गया। इस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आपत्ति जताई। हमारे देश में पानी राज्य का विषय है और पश्चिम बंगाल सरकार पानी के बंटवारे के प्रस्तावित अनुपात को ले कर लंबे समय से विरोध कर रही है।

क्यों हे ममाता को इस बंटवारे पर आपत्ति

वर्ष 2011 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बंगलादेश की यात्रा पर गए थे तब यह समझौता दोनों देशों के बीच किया गया था कि तीस्ता जल का दोनों देश बराबर इस्तेमाल करेंगे लेकिन तब भी ममता बनर्जी ने यह तर्क देते हुए विरोध किया था कि इस से सूखे के मौसम में पश्चिम बंगाल के किसान तबाह हो जाएंगे।

अतः अपने राज्य की जनता को तबाही से बचाने कते लिए वह इस समझौते को मानने से हमेशा इनतकार कर रही है। पर हाल की बनी पृष्ठभूमिको देखते हुए लगता है कि दोनो देशा के पीएम और सीएम ने मिलकर इसका उचित रास्ता निकाल लिया है तो आने वाले समय में सबकते सामने आ जाएगा ।

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