वैश्विक व्यापार और आपसी संबंधों को बढ़ाने के मद्देनज़र चीन ने अपने प्रोजेक्ट वन बेल्ट-वन रोड का 14 मई को श्री गणेश किया. 1000 अरब डॉलर की लागत से बना ‘वन बेल्ट-वन रोड’ मे शामिल होने के लिए 29 देशों के राष्ट्र प्रमुखों और 70 देशों के प्रतिनिधियों ने इस प्रोजेक्ट में शिरक्त की. अपने देश के आर्थिक गलियारों को सुधारने का सही और बेहतरीन मौका शायद इन सभी देशों को किसी दूसरे माध्यम से न लुभाया हों.
‘वन बेल्ट-वन रोड’ जिसकी पूरे विश्व में चर्चा हुई. शिरकत करने वाले देशों मे रूस, पाकिस्तान, मंगोलिया, आदि जैसे देश शामिल थे. इस प्रोजेक्ट का मकसद पूरे विश्व को एक पट्टी-एक रोड़ के माध्यम से जोड़ा जाए जिसमें परिवहन के द्वारा देश अपने आर्थिक उँचाइयों को छू सकें. वन बेल्ट-वन रोड में सिर्फ एशिया के ही देशों ने शिरकत नही की थी, बल्कि इसमें अफ्रीका और यूरोप के तमाम देशों ने हिस्सा लिया. जिसे तमाम मीडिया ने सराहा.
वन बेल्ट-वन रोड चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का सपना हैं. इस प्रोजेक्ट का मकसद बताया जा रहा है कि इसके जरिए चीन एशियाई देशों के साथ अपना संपर्क और बेहतर बनाना चाहता हैं. साथ ही यूरोप और अफ्रीका को भी एशियाई देशोंके साथ करीबी से जोड़ना. इस प्रोजेक्ट के तहत जमीन और समुद्री रास्तों से व्यापार मार्गों को बेहतर बनाया जाएगा.
जहां कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों ने इसमें भाग लिया तो वहीं, भारत ने इस प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया. भारत ने उसकी इस प्रोजेक्ट से न जुड़ने की वजहें भी साफ की. विदेश मंत्रालय का कहना हैं कि कोई भी देश ऐसे प्रोजेक्ट को स्वीकार नही कर सकता जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी सभी चिंताओं को दरकिनार करते हुए सिर्फ अपने हित के बारे मे ही सोच रहा हैं.
दरअसल, वन बेल्ट-वन रोड के व्यापार करने का रास्ता सीधा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता हैं. भारत पहले से ही इसे अपना हिस्सा मानता हैं और पीओके में होने वाली सभी आर्थिक गतिविधियों को सिरे से नकारता हैं. लेकिन अब चीन भी पीछे हटने वाला नही हैं क्योकि चीन अभी तक इस प्रोजेक्ट में 46 अरब डॉलर का निवेश कर चुका हैं. जिससे भारत के सामने अब अक गंभीर चुनोती खड़ी हो गई हैं.
अगर चीन अपने प्रोजेक्ट को शुरु करने से पीछे नही हटता है तो फिर भारत के पास क्या रणनीति होगी. अक्सर पीओके का मुद्दा पूरी दुनिया में छाया रहता हैं. भारत-पाक दोनों इसे अपना अभिन्न अंग मानते हैं ऐसी परिस्थिति में भारत इस पर अपना कैसा रूख अख्तियार करेगा जो संभवतः सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तीनों को लाभ पहुँचाने वाला रास्ता हों. अब भारत के लिए सवाल यह हैं कि क्या वह सिर्फ अपने दावों को ही गिनाता रहेगा याफिर उन सभी दावों पर कोई एक्शन भी लेगा.
भारत के वन बेल्ट-वन रोड में हिस्सा न लेने के फायदे भी हैं. अगर भारत इस प्रोज्केट में हिस्सा नही लेता हैं तब भी भारत की अर्शव्यवस्था को कोई खतरा नही पड़ेगा क्योकि भारत के पास आर्थिक और राजनितिक ताकत हैं जिसको कोई और ताकत मिलकर भी अलग नही कर सकती. साथ ही भारत ने इस बीच विश्व में अपना अहम स्थान बनाया हैं जिसको लेकर चीन काफी चिंतित हैं. ऐसे में भारत को अपनी दूसरे देशों के साथ विदेश-निति सोच-समझकर करनी होगी, जिससे भारत की संप्रभुता को कोई खतरा न पड़े.
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न कपिल मिश्रा ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com