हमारे हिन्दुस्तान में एक बात तो खास है कि कोई भी कुछ करना नहीं चाहता. सिवाय अपने परिवार के बारे में सोचने के, उनको पूरा आराम चाहिये लेकिन उस आराम के लिये हमें कुछ भी करने के लिये मत कहिये, क्योंकि करने की सारी जिम्मेदारी तो सरकार की है । जिसको हमने वोट दिया और वो अपने वादों से मुकर नहीं सकती । उस सरकार को जैसे ही 2, 3 साल होंगे जिसने हमारे वोट से जीत हासिल की है, हम ताने मार मार के मार मार के इतनी बुरी हालत कर देंगे कि वो सरकार भी सोचने लगेगी कि यार मेरी पार्टी की जीत क्यों हो गई (वो अलग बात है कि ऐसी बातों से नेता को कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला, चाहे किसी भी पार्टी का हो).
वो जनता को जब कहते है कि देश की स्थिति सुधारने के लिये हमें आप लोगों का साथ चाहिये तो उस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा, बस एक ही रट लगाए हुए रहते हैं, कि आपने वादा किया था. अगर हम जीत गए तो आपको ये आराम देंगे, वो आराम देंगे. उसका क्या हुआ, इतने दिन हो गए, अभी तक कोई फर्क नहीं दिख रहा, सारे नेता सिर्फ बातें करते हैं करना कोई कुछ नहीं चाहता, वगैरा वगैरा ।
अब देखिये ना इस बार मोदी जी ने कहा था अगर बी.जे.पी. जीतेगी तो जनता के अच्छे दिन लाने की हमारी कोशिश होगी । मोदी जी ने नारा दिया “स्वच्छ भारत अभियान” उसके लिये लोगों को बोला अपनी दुकान के पास एक डब्बा रखें, जिसमें दुकान का कूड़ा कचरा डाल सकें. पर हम ठहरे नवाब, कचरे का डिब्बा रखने में या कचरे को कचरे के डिब्बे में डालने से हमारी शान भी तो घटती है. हम कचरा डालने वाला डिब्बा भी नहीं रखेंगे और किसी ने रखा है तो हम कचरा तो उसमें नहीं डालेंगे । लेकिन सरकार से सवाल जरूर करेंगे, कि अच्छे दिन कब आएंगे.
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दीवारों पर या गली के नुक्कड़ पर या किसी नाली के पास पेशाब नहीं करें, उसकी बात कौन सुनता है, वो तो उसी दीवार पर पेशाब करेंगे, और पूछेंगे कि अच्छे दिन कब आएंगे । वैसे ही बिजली चोरी करने वाला व्यक्ति पूछता है, कि अच्छे दिन कब आएंगे । हालांकि वो चोरी करेगा जिससे सरकार को नुक्सान होगा तो वो अगली बार कीमत और बढ़ा देंगे तब वो पूछेगा, क्या यही अच्छे दिन हैं ।
किसी भी देश के अच्छे दिन लाने में सबसे अहम भागीदारी होती सरकारी कर्मचारियों की चाहे वो किसी भी क्षेत्र से हो, अगर वो अपनी ड्यूटी (अपना काम) पूरी ईमानदारी से करे तो जनता को भी आराम मिल जाएगा, क्योंकि अब उनका काम जल्दि हो जाएगा और इधर उधर के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे और ये सरकारी अफसर काम करने की जगह पूछता है, अच्छे दिन कब आएंगे । खुद अपनी ड्यूटी ईमानदारी से नहीं करेंगे लेकिन अच्छे दिन इनको भी चाहिये, अरे भाई! तुम अपना काम ईमानदारी से तो करो, जनता को अपने आप महसूस हो जाएगा, कि अच्छे दिन आ गए और हो सकता है कि इतनी जनता का काम आप ईमानदारी से बिना कुछ पैसे लिये और समय पर करेंगे तो आपको भी बहुत अच्छा महसूस हो और अपने भीतर की सारी निगेटिविटी जाती रहे ।
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सरकार ने टैक्स देने के जो नियम बनाये है, उससे कैसे बचा जाए ये पूछने के लिये हम सी. ए. के 10 चक्कर लगा लेंगे. 20 फोन कर देंगे लेकिन कोशिश करेंगे कि सरकार के खाते में कम से कम पैसा जमा करवाना पड़े क्यों ? क्योंकि हम अपने लिये जीते हैं । और अपने बच्चों के लिये धन इकट्ठा करने में इतने मशगूल रहते हैं, कि दूसरी कोई बात दिमाग में आती ही नहीं चाहे हमारा इकट्ठा किया हुआ धन हमारा बच्चा बड़ा होकर अपने यार दोस्तों के साथ ऐसे ही उड़ा दे, लेकिन हम सरकार को पैसा क्यों दें । मेहनत हमारी, पैसा हमारा, दिमाग हमारा, फिर सरकार का क्या हक है, कि वो इतना ज्यादा टैक्स वसूल करे, सोच हमारी ऐसी है । लेकिन हमारे आराम की जिम्मेदारी सारी सरकार की है, टैक्स हम पूरा नहीं देंगे उसकी चोरी करेंगे । लेकिन पूछेंगे ये कि अच्छे दिन कब आऐंगे । और टैक्स पूरा नहीं देना एक तरह से देश से गद्दारी ही है ।
अगर आप अपना पूरा टैक्स ईमानदारी से दें तो टैक्स रेट भी कम हो जाएगी, जिससे आपको इतना टैक्स देना भी नहीं पड़ेगा, और चोरी करने के कारण आपको आॅफिसरों से भी डरकर रहना पड़ेगा । और उनको अन आॅफिशियली पैसा भी देना पड़ेगा । और मन में एक डर फिर भी लगा रहेगा, कि क्या मालुम कब कौन आ जाए, ये कागज यहां नहीं वहां रखो और अपने कर्मचारियों से 10 बार पूछेंगे अरे वो वहां रखा या नहीं । इतना डर अगर पूरा टैक्स भर देंगे तो नहीं रहेगा । ऐसे ही कुछ और डिर्पाटमेंट हैं उनका भी यही हाल है.
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आॅफिस में देरी से जाना और जल्दि घर आना, और अपने देश के राष्ट्रगान गाते हुए उसकी ईज्जत नहीं करते समय, और अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने वाले व्यक्ति, और इसी श्रेणी में डाॅक्टर भी हैं जिनका काम है, जो बीमारी है उसके हिसाब से दवाईयों की स्लिप बनाना लेकिन बिना कमीशन के किसी भी कम्पनी की दवाईयां नहीं लिखते वो भी सोचते होंगे कि अच्छे दिन कब आएंगे । ट्रेफिक नियमों का पालन कोई भी नहीं करेगा, लेकिन अच्छे दिन कब आएंगे वाली शिकायत जरूर करेंगे ।
अंत में बात ये है कि अगर खुद नहीं बदल सकते तो अच्छे दिनों की आस छोड़ देना चाहिये, क्योंकि देश आपकी आशा या दूसरों की कमियां निकालने से नहीं बदलेगा. वो आपके आचरण से या आपका व्यवहार दूसरों के प्रति कैसा है उससे बदलेगा । अब आप कभी किसी भी प्रकार का बदलाव चाहते हैं तो अपने आप को बदलो देश अपने आप बदला हुआ नजर आएगा. हो सकता है आप सरकार पर दोष लगाएंगे कि उसने वादा किया था अच्छे दिन ला देंगे और ला नहीं पाए, आप समझेंगे सरकार ने अपना वादा नहीं निभाया । तो अगली बार आप नई सरकार लाएंगे और आ भी जाएगी लेकिन क्या वो अपना वादा पूरा निभा पाएगी इसकी क्या गारंटी है. फिर आप वही दोहराएंगे यानि इस बार इसको भी वोट नहीं देंगे दूसरी को देंगे तो जनाब आप सरकारें बदलते रहना खुद मत बदलना तब तक आपकी उम्र ढल जाएगी.
फिर बच्चों से बताना हमने बहुत सरकारों को बदला है लेकिन हम नहीं बदले, अगर हम खुद बदल जाते तो सरकारें बदलने की जरूरत ही नहीं होती और हमारा देश असली आजादी का जश्न मना रहा होता और पूरे हिन्दुस्तान में हमेशा जश्न जैसा ही माहौल होता यानि सब खुशहाल । तो क्या सोचा आपने ? अपने आपको अच्छाईयों के प्रति बदलना है या सरकारें बदलते जाना है अब बच्चों की खुशहाल जिंदगी आपके हाथ में है ।