प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री इस दुनियाँ से पूछ रही है कि क्या सच में इंसान ईश्वर से प्यार करता है? अगर ये सच है तो इंसान ईश्वर के दिखाये मार्ग पर क्यों नहीं चलता, क्यों आज भी जाति और धर्म के नाम पर लड़ाई होती है। अगर हम सच में अपने ईश्वर के लिए कुछ कर सकते है तो वो है खुद पर नियंत्रण रख हम आपस में एक दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर न लड़े, क्योंकि ईश्वर हम सब के अंदर है। कवियत्री कहती है कि ईश्वर की पूजा करने से ज़्यादा उनके दिखाये मार्ग पर चलो,इसका मतलब ये भी नहीं कि कोई पूजा ही न करे,ईश्वर की कही बाते हमे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिये।अगर आप ज्ञानी है तो घमंड न करे, दूसरे को गलत करता देख उनका उपहास न उड़ाये बल्कि दूसरों को भी सही राह दिखाओ। अपनी तरफ से ठीक रहो फिर चाहे दूसरा तुम्हें उस पल समझे न समझे। एक दिन तो हम सब को ये समझना है की हम सब यहाँ कुछ पल के मेहमान है तो क्यों न आजीवन अच्छा और सही राह पर चलने का प्रयास करे। अच्छे किस हद तक बन पायेंगे ये तो मैं नहीं कह सकती लेकिन प्रयास करना तो हमारे हाथ में है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ईश्वर से अगर करते हो प्यार,
तो उनकी कही बातों को मानों।
गलती जो हो जाये तुमसे कभी तो ,
हर बार खुदके मन में ये ठानो।
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आज की गलती कल फिर नहीं दोहराऊँगा।
वक़्त पे खुद को, जो मैंने न सुधारा,
तो फिर कही का न रह पाऊँगा।
दूसरों को कर के दुखी,
मैं खुद कैसे खुश रह पाऊँगा ???
ईश्वर से अगर करते हो प्यार,
तो उनके दिखाये मार्ग पर चलना।
सूर्य का तो काम ही है,
रोज़ उभरकर फिर ढलना।
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कभी सही मार्ग पर चल पाओगे,
तो कभी सीधी राह में भी फिसल जाओगे।
रख पाये जो,जीवन भर खुद पर नियंत्रण,
जीवन के हर पड़ाव में,जीवन का लुफ्त फिर तुम ही उठाओगे।
ईश्वर से अगर करते हो प्यार,
उनकी पूजा से ज़्यादा,उनकी कही बातो पर ज़्यादा ध्यान देना।
लालच की आड़ में तुम कभी किसी से कुछ न लेना।
जो करते है सच्चा प्यार,वो हर हाल में साथ निभाते है।
नज़र अंदाज़ कर खुदकी क्षमता,
हम क्यों अक्सर दूसरे से उम्मीद लगाते है??