बेजुबान जानवरों का दर्द देखकर मुझे भी दर्द होता है – रिया चौधरी

आज के घोर प्रतिस्पर्धा के युग, इंटरनेट एवं सोशल मिडिया के जमाने में जहा युवा वर्ग को खुद के लिए समय नही मिल पाता तो वही दूसरी तरफ 23 साल की रिया चौधरी ने समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।

Riya Chaudhary

दिल्ली के एक साधारण से जाट परिवार में जन्मी रिया को जब अपनी गली- मोहल्ले में या कहि और जब कोई असहाय, बीमार, चोटिल आवारा कुत्ते दिखाई देते है, तो रिया उन्हें अपने साथ ले आती है। बीमार कुत्तो के इलाज से लेकर चोटिल कुत्तो के मरहम तक का सारा खर्च वो खुद परिवार से मिलने वाले जेब खर्च से वहन करती है।

रिया के पिताजी ने बताया कि रिया को बचपन से ही पालतू जानवरों से लगाव रहा है। रिया से जब पूछा की आप गलियों के आवारा कुतो को इस प्रकार क्यों रखते हो, तो रिया ने बताया कि अच्छी नस्ल के कुत्तो को लोग खरीद कर अपने घर में रखते है, उनका पालन पोषण अच्छे से करते है। और गली के इन बेज़ुबान कुत्तो को गाड़ी से कुचल देते है, या इन्हे मारते रहते है, और ये भूखे भी मर जाते है। और जब मै इनको इलाज या मरहम के लिए अस्तपाल ले जाती थी, तो इन्हे गलियों के आवारा कुत्ते बोलकर इनका इलाज नही किया जाता था।

फिर इन बेज़ुबान जानवरो को दर्द में देखकर मुझे भी दर्द होता था, इसलिए पिछले 4-5 साल से मै ही इनका इलाज, महरम करती हूं। इनको भोजन करवाती हूँ। पहले मोहल्ले के लोग भी साथ नही देते थे, इनको भगा देते थे। पर अब वो भी थोड़ी बहुत सहायता कर देते है। मेरा परिवार भी पूरा सहयोग करता है। अब तो मेरे पाले हुए कुत्तो को लोग पालने के लिए भी ले जाते है। वर्तमान में मेरे पास 10 कुत्ते है, जिनको मै अपने पास रखती हूं, उनका सारा ध्यान रखती हूं।

वास्तव में आज रिया जैसे युवा की समाज, देश को जरूरत है। रिया का इस प्रकार बेज़ुबान जानवरो की सेवा करना एक सराहनीय प्रयास है। इस प्रकार के लोगो ने ही आज मानवता को जिन्दा रखा हुआ है।

[स्रोत- विनोद रुलानिया]

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