विचारो की जंजीरो में जकड़ी अवधारणाएं

vichro pr aadharit avdharnaye

हम आज भी वही सोचते और वही रूढ़िवादी सोच रखते हैं, जहां हमें सिखाया गया था कि हम हमारे भाग्य के अनुसार ही सब कुछ पाते हैं.

मैं मानती हूँ कि इस बात को कि इंसान अपने कर्मो से एवं अपने भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं पा सकता, और हर चीज़ के लिए एक समय निर्धरित होता है. परन्तु इसका मतलब ये नहीं कि हम अपनी और से प्रयत्न करना ही बंद कर दे.
एक बहुत ही पुरानी एवं प्रचलित कहानी है छोटे हांथी के बच्चे की !

एक बच्चे को बचपन से ही हाथियों से बहुत लगाव था परन्तु टीवी के अलावा उसने उन्हें प्रत्यक्ष कहीं नहीं देखा था. वक़्त के साथ वह बच्चा बड़ा हो गया और एक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बन गया.एक दिन अपनी टीम के साथ उसे एक ऐसे गांव में जाने एक मौका मिला जहां के लोग हर काम के लिए हाथियों पर आश्रित थे. वहां उसने देखा की किस प्रकार टनो भारी हाथी सिर्फ एक पतली सी रस्सी से बंधे होने पर भी एक निरीह का जीवन व्यापित कर रहे थे.

कौतुहलवश उसने एक महावत से इसका कारण पूंछा, कि क्यों ये ताकतवर पशु इस तरह का जीवन बिता रहे हैं?
तब महावत ने कहा कि “यह इनकी सोच का ही असर है”. जब ये हाथी छोटे थे तब से ही हम इन्हे इन रस्सियों से बांध के रखते हैं जिन्हे तोड़ पाने में असमर्थ होते थे. समय के साथ साथ हाथी भी बड़े हो जाते हैं पर उनकी सोच वही है कि हम यह रस्सी अभी भी नहीं तोड़ सकते है. उनकी सोच वहीँ की वही रहती है. इसीलिए इतने बड़े होने के बाद भी एक नाज़ुक रस्सी उन्हें बांध के रखने में समर्थ होती है.

यदि हम जंगल में वितरण करने वाले आज़ाद हाथी की तुलना इन पशुओ से करे तो हमें ज्ञात होता है कि हमारी सोच हमें किस हद तक बदल सकती है. सामान रूप से हाथी परन्तु उनके विचार, एक को जंगल का राजा बनाते हैं वही दूसरे को एक पालतू पशु.

अर्थात, जैसा हम सोचते हैं, करना चाहते हैं वह हमारे व्यक्तित्व पर बहुत ही ज्यादा असर डालता है.
इसलिए ‘Think what you want to be ‘ मतलब सोचिए वह जो आप पाना चाहते हैं, और ज़रूरी नहीं जो बरसो से चला आ रहा है वह सही ही है, बदलाव जीवन में उतना ही आवश्यक है जितना की जीवित रहना.

 

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न नमिता कौशिक ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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