कहते है सब मुझसे कि, लड़की हो कम बोलो,
मै सोचती हूं की क्यों बोलू कम,
जब कम बोलों तो, कहते है आवाज उठाओ,
जब आवाज उठाओं तो कहते है, बदजुबानी है,
आखिर! क्या करें? फिर ये चुप रहे या बोले कुछ
दिल में रखे अपने अरमानों को खोले कुछ,
क्योंकि पर मिलने से पहलें ही कट जाते है,
आसमान में देखने की मनाही है इसे,
ऐसा लगता भी है क्यां होंगे अब दिल के अरमां पूरे
या फिर वही दहलीज , दूनिया की रस्में खीच लेगी इसे पीछे,
आखिर कब तक यह रहेंगी ऐसे ?
कब तक साथ देने का कहकर पीछे खीचने वालों
से बचेगी ?
कब ! बदलेगी दुनिया कब बदलेगी एक लड़की की जिंदगी,
यह गांवों की कहानी नहीं है ,यह हर जगह की कहानी
मेरी ही नहीं है हर उस लड़की की कहानी ,
जिसे उड़ने के लिए पंख तो मिलते है पर
फैलाने के लिए खुला आसमान नहीं.
चीजों से लड़ने के लिए कहा तो जाता है
पर लड़ने के लिए वो अधिकार नहीं मिलता
यही है इसकी असलियत
और उस समाज की जो लड़की को पैदा तो कर लेता है
पर उसे आजादी देकर भी अनजाही अनदेखी बेड़ीयों में जकडे रहता है
जिसके लिए वो बस कहती है पंख मिले तो उड़ जाउंगी
खुले आसमान में ही अपनी घर बनाउंगी।




















































