गाँव 67 जीबी में बनी हुई जीएलआर में निर्माण के काफी सालों बाद भी पेय जलापूर्ति नही, पानी को तरसते जीएलआर, न पाईप न पानी कैसे होगी जलापूर्ति?सरकार कितना भी खर्चा करें, कितने भी स्वच्छ भारत अभियान या मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान चला ले लेकिन जनता को पेयजल नसीब नहीं. यह कोरी कल्पना नहीं हकीकत है, यह हकीकत सामने आई है गांव 67 जीबी में, जहाँ पेयजल के लिए बनाया गया सीएलडब्ल्यू, जीएलआर, डिग्गी जिसका निर्माण लगभग 18- 20 साल पहले सन 1997-98 के आसपास हुआ, ग्रामीण क्षेत्र के लिए ऐसा होने से एक ख़ुशी, एक पेयजल उपलब्धता की उम्मीद जगी है लेकिन यह छोटी सी उम्मीद कब धूमिल हो गई.
पता नहीं चला क्योंकि जबसे डिंग्गी बनी तब से इलाके की इस डिंग्गी को कभी दो चार वर्षों बाद कभी की नेता या मुख्यमंत्री के अभियान या आगमन के चलते ही पानी उपलब्ध होता है वरना इलाके में पेयजल आपूर्ति की कोइ सुध नहीं लेता, ग्रामीण बताते हैं कि इस डिंग्गी को दूसरे गाँव के पास बनी पेयजल योजना वाटर्वक्स से पानी देना शुरू हुआ था जो निर्माण से लेकर आजतक सिर्फ एक दो बार ही आया है और ग्रामीण अधिकारी, कर्मचारियों के पास चक्कर लगाते हुए परेशान हैं.
जन प्रतिनिधि भी इस बात पर चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि जब किसी एमएलए, एमपी या अन्य किसी जनप्रतिनिधियों की अनूपगढ क्षेत्र में यात्रा, या कोई कार्यक्रम के लिए आने की खबर होती हैं तो कर्मचारी जैसे तैसे जुगाड़ लगाकर डिंग्गी में पानी डालते हैं लेकिन यह भी कोरी फॉरमैलिटी के लिए डिगी में आसपास, काफी गन्दगी फैली हुई हैं जो यह दर्शाता है कि स्वच्छ भारत अभियान का यहाँ कोई असर नहीं है कोरी कल्पना साबित होता नजर आता है भारत सरकार स्वच्छता के लिए स्वच्छ भारत अभियान को लेकर वहुत ही गम्भीर है.
लेकिन यहाँ गांव की गलियों और डिंग्गी को देख यह नही लगता कि कर्मचारियों को स्वच्छ भारत अभियान की कोई परवाह है लेकिन यह भी नहीं जनस्वास्थ्य विभाग भी पेयजल आपूर्ति करने के दावे करते देर नहीं लगाया करता है क्योंकि मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत भी राज्य सरकार द्वारा पेयजल आपूर्ति और जल संग्रहण पर काफ़ी वय किया, जिससे राज कोष से देश के पैसे का इस्तेमाल हुआ है लेकिन अगर आज भी डिंग्गी में पेयजल नहीं, गाँव में पेयजल आपूर्ति संकट है तो आप कैसे यकीन करेंगे कि भारत के नागरिकों के साथ जमीनी स्तर पर क्षेत्र विशेष रूप में भेदभाव हो रहा है.
अगर नहीं हो रहा हो तो राजस्थान श्रीगंगानगर जिला में जहां सीमावर्ती क्षेत्र अनूपगढ शहर का एक छोटा सा गांव 67 जीबी हो और गांव में जीएलआर में आज भी पेयजल संकट देखा जा सकता है तो केसे यकीन करें यहां का आवाम की जन प्रतिनिधि या सरकार या कर्मचारियों द्वारा अपने कार्यों को निश्चित रूप से और निष्पक्षता से किया जा रहा है,और जलस्वावलम्बन अभियान उस लोकोक्ति की याद दिलाने लगा है जिसमें कहा जाता “थोथा चना बाजे घना” क्योंकि गांव 67 जीबी की डिंग्गी में अभी भी पानी की कोई उपलब्धता नहीं है और मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के प्रचार से कई महीनों अखबारें अटी रहीं हैं।
क्या सरकार के द्वारा चलाए गए अभियान सिर्फ प्रचार तक सीमित रहेंगे? क्या जन सुविधाओं का टोटा रहेगा और अखबारों में फ़ोटो छपा कर झूठ की वाह वाही लूटने का चलन ट्रेंड बन गया?आखिर वो अच्छे दिनों का इंतजार ग्रामीण कबतक करते रहेंगे जिनमें सभी लोग आत्मनिर्भर हो, गाँव आत्मनिर्भर, हो, गाँव में बिजली, पानी,के साथ सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हो।
[स्रोत- सतनाम मांगट]