शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव से सारी कलाओं की उत्पत्ति हुई हैं । इसलिए ऐसा माना जाता हैं कि उनके ताडव नृत्य से ही कथक की उत्पत्ति हुई हैं । भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला की यह शैली काफी प्राचीन हैं । लेकिन इस कला को ऊँचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय पंडित बिरजू महाराज को जाता हैं ।
कथक का शाब्दिक अर्थ होता हैं ‘कथा कहे सो कथक कहलाता हैं’। अर्थात नृत्य की इस शैली में शारीरिक भाव-भंगिमा एवं विभिन्न मुद्राओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जाता हैं। 4 फरवरी 1938 को लखनऊ उत्तर प्रदेश में जन्में कथक के सच्चे साधक पंडित बिरजू महाराज ने कथक के शाब्दिक अर्थ के साथ न्याय करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।
नृत्य के दौरान उनकी शारीरिक भाव-भंगिमा एवं मनमोहक मुद्रा देखने योग्य होती हैं । पंडित बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण हुआ करता था। जो बाद में बदल कर बृजमोहन मिश्र कर दिया । फिर कथक नृत्य कला में ख्याति अर्जित करने के बाद वे पंडित बिरजू महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था जो लखनऊ घराने से और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाने थे । पंडित बिरजू महाराज में मात्र तीन वर्ष की अवस्था में ही नृत्य कला देखी गई। जब वे नौ वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई । तब उनके चाचा ने अपने सानिध्य रख कर उन्हें कथक नृत्य की तालीम दी।
तब जाकर देश को एक ऐसा कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ जो अपनी विशिष्ट नृत्य शैली से दुनिया को अपना दिवाना बना दिया । बॉलीवुड पर भी उनका जादू सर चढ़कर बोला और उन्हें कई फिल्मों में नृत्य निर्दशन करने अवसर प्राप्त हुआ ।जिसके लिए उन्हें कई बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
कथक को ऊँचाइयों तक पहुंचाने में उनके भागीरथी प्रयास के लिए उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण, कालीदास सम्मान और लता मंगेशकर सम्मान समेत अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका हैं । पिता की मृत्यु के बाद जिस तरह की कठिनाईयों से पंडित बिरजू महाराज को गुजरना पड़ा वह अवर्णनीय हैं । कला के ऐसे सच्चे साधक को फिर भी! न्यूज का सलाम ।
[स्रोत- संजय कुमार]