‘भारत रत्न’ सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को गूगल ने खास डूडल बनाकर किया याद

भारत रत्न सम्मानित शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को उनके 102 वें जन्मदिन पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उन्हें याद किया है जी हां दुनिया की विख्यात सर्च इंजन गूगल के डूडल में सफेद रंग की पोशाक पहने कोई और नहीं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां है जो शहनाई बजाते नजर आ रहे हैं.Ustad Bismillah Khan

बचपन से लेकर आज तक अगर शहनाई का नाम हमारे कानों में पड़ा है तो हमें उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से परिचय अपने आप ही हो जाता है. उन्होंने शहनाई वादन में जो मुकाम हासिल किया है वह किसी परिचय का मोहताज नहीं है.

पुरस्कार:

यूं तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को बहुत से पुरस्कारों से नवाजा गया है मगर 1916 के जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भारत रत्न से सम्मानित होने वाले तीसरे भारतीय संगीतकार थे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उन्हें 2001 में भारत रत्न, 1980 में पद्म विभूषण, 1968 में पद्म भूषण, और 1961 में पदम श्री सम्मान से नवाजा गया था और इसके अलावा ना जाने कितने अन्य पुरस्कारों से सम्मानित सम्मानित किया गया है.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन दिल्ली के लाल किले पर शहनाई बजाने का गौरव हासिल है और इतना ही नहीं उन्होंने 26 जनवरी 1950 को आजाद भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर भी शहनाई की तान छेड़ी थी.Google Doodle of Ustad Bismillah Khanबिस्मिल्ला खां बिहार के एक मुस्लिम परिवार में पैगंबर खा और मिट्ठन बाई के घर में पैदा हुए थे और उनके बचपन का नाम कमरुद्दीन था लेकिन वह बिसमिल्लाह के नाम से जाने का है आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बिस्मिल्लाह का शाब्दिक अर्थ है, श्री गणेश. खां अपने माता पिता की दूसरी संतान थे और उनके खानदान के लोग भी शहनाई वादक थे और दरबारी राग बजाने में माहिर थे.

मात्र 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खां अपने पिता के साथ बिहार से यूपी के बनारस आ गये. यहां उन्होंने अपने मामा अली बख्श ‘विलायती’ से शहनाई बजाना सीखा. उनके उस्ताद मामा ‘विलायती’ विश्वनाथ मंदिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे.

घंटों किया करते थे रियाज:

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ था और मुग्गन ख़ानम उनके मामा सादिक अली की दूसरी बेटी थी बिस्मिल्लाह खान और मुग्गन खानम की 9 संताने हुई जहां उस्ताद अपनी बेगम से बहुत प्यार करते थे वही शहनाई को भी अपनी दूसरी बेगम कहते थे

बिस्मिल्लाह खां से उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बनने के लिए 30 से 35 वर्षों तक अपनी संगीत साधना में हर दिन 6-7 घंटे बिताए और वह संगीत को ही अपना धर्म मानते थे. उस्ताद काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में जाकर शहनाई बजाते थे और गंगा किनारे बैठ कर घंटो याद किया करते थे.

21 अगस्त 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान 90 वर्ष की आयु में शहनाई की तान से नाता छूट गया और अब तक ऐसा लगता है कि शहनाई से उसकी तान छीन ली गई है.

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