अच्छे संस्कार हमारे जीवन को ही आसान नहीं बनाते हैं, ये कुण्डली के कई दोषों के ज्योतिषीय उपाय भी हैं । सुबह उठ कर ऑंखें खोलने पर उषापान, धरती पर प्रथम पग रखने से पहले धरती मॉं को प्रणाम, स्नानदि कर्मों से लेकर रात्रि सोने से पहले ईश्वर को प्रणाम करने तक, हमारे हिन्दू धर्म में कई नियम बताए गए हैं । इन नियमों में जहॉं व्यक्तित्व-विकास होता है, वहीं हमारे स्वस्थ आचार-विचार से हम स्वयं का ही नहीं, समाज का भी उद्धार करते हैं ।
सेवा और दया मानव का सबसे बडा धर्म है । भारतीय संस्कृति में न केवल मनुष्य बल्कि प्रत्येक जीव की रक्षा मानव का सर्वोपरि धर्म कहा गया है और जीव सेवा भी अत्यन्त महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है । भारतीय धर्म और शास्त्रों में अनादि काल से जीवमात्र की सेवा की, उनकी रक्षा की परम्परा रही है । सम्भवतः इसके पीछे यह कारण भी रहा होगा कि हर जीव धरती पर पर्यावरण संरक्षण में एक अहम भूमिका निभाता है । किसी भी प्रजाति के कम होने से खाद्य श्रृंखला टूट सकती है ।
इसीलिए शास्त्रों में हमारी दिनचर्या हेतु ऐसे नियम बनाये गये हैं जिससे प्रतिदिन कुछ समय अन्य जीवों की सेवा में लगायें । ऐसा करके हम लोक परलोक सुधार सकते हैं । हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि हम जो भी धनोपार्जन करते हैं, जो भी उपभोग करते हैं, खाते हैं, उसका एक अंश पशु-पक्षियों के लिए अवश्य निकालना चाहिए ।
इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पशु-पक्षियों की सेवा मात्र से कुण्डली के कई दोषों का शमन होता है तथा कई ग्रह शान्त व प्रसन्न होते हैं । कुण्डली के दोष पता चलने पर उपायों के लिए भारी भरकम धन व्यय करने से अधिक श्रेयस्कर यह है कि हम अपनी नियमित दिनचर्या में से ही कुठ समय प्राणियों की सेवा निमित्त निकालकर अपने सस्कारों का भी पालन करे और साथ ही साथ कुण्डली के कई दोषों का भी निवारण कर सकें ।
वैसे भी, अच्छे कर्म और सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाते । कभी भी हमारे किसी कठिन समय में हमारे पुण्य फल सहारा देने खड़ें हो सकते हैं ।
इसी परिप्रेक्ष्य में कुछ सुस्थापित प्राणी सेवा के नियम व लाभ निम्नवत हैं –
गाय – हमारे शास्त्रों में गऊ को माता का स्थान दिया गया है । ऋग्वेद में दूध देने वाली गायों को अघन्य की संज्ञा दी गयी है अर्थात जिसे मारा न जा सके या जिसे मारना अक्षम्य अपराध है । कहा गया है कि गाय में 33 करोड देवी देवताओं व सभी तीर्थों का वास है । भगवान श्रीकृष्ण, जो स्वयं विष्णु के अवतार हैं, गौ-सेवा के लिए जाने जाते हैं । हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि प्रत्येक दिन पहली रोटी गाय के नाम की निकालनी चाहिए । पूरे घर पर गौमाता का आशीर्वाद बना रहता है ।
गाय की सेवा कर हम सभी देवी-देवताओं और तीर्थों की सेवा का पुण्य प्राप्त करते हैं । इसके अतिरिक्त ज्योंतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह को और योगकारक बनाने के लिए या अनुकूल करने के लिए गाय की सेवा ही सर्वोत्तम उपाय है ।
लग्न कुण्डली में यदि बृहस्पति तृतीय, षष्ठम, अष्ठम या द्वादश भाव में अथवा वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर इत्यादि नीच एवं शत्रु राशियों में हो और जातक गौ-सेवा करे तो बृहस्पति की कुपित दृष्टि से बच सकता है । मिथुन या कन्या राशि में बृहस्पति हो तो जातक को कटी हुई हरी घास बाहर कहीं घूम रही किसी गाय को खिलाना चाहिए ।
कुत्ता – कुत्ते की सेवा कर हम यम ही नहीं, राहु, केतु और शनि, तीनों ग्रहों को शान्त कर सकते हैं । पितृपक्ष में कुत्ते का ग्रास निकालने का तो शास्त्रों में नियम है ही । कहा गया है कि कुत्ते को भोजन कराने से अपमृत्यु जैसा भय भी टल जाता है । शनिवार के दिन शनि को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को रोटी खिलानी चाहिए । राहु केतु की शान्ति के लिए प्रत्येक दिन कुत्ते की सेवा कर सके तो बहुत ही अच्छा होगा । यदि न कर पायें तो मंगलवार व बुधवार अवश्य रोटी, ब्रेड या बिस्किट खिलाना चाहिए ।
मछली – मछली का स्थान हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत ऊॅंचा है । विष्णु के दस अवतारों में उन्होंने मत्स्य के रूप में भी अवतार लिया था । राहु केतु की शांति के लिए भी मछली को खाद्य पदार्थ डालना चाहिए । राहु की महादशा प्रारम्भ होने पर व्यक्ति का तुलादान कर आटा (गेंहूॅ का आटा गूॅंथकर) मछली को खिलाने से राहु की महादशा के क्रूर फलों का शमन होता है ।
चींटी – हमारे शास्त्रों में काली चींटी को नारायण का रूप माना गया है । पितृपक्ष में चींटी के हिस्से का भोजन अवश्य निकाला जाता है । एक छोटा सा उपाय है राहु, केतु, शनि की शान्ति के लिए – शुद्ध घी में आटे को गूॅथकर, शक्कर मिलाकर कसार बनाऐं और चींटियों के बिलों पर डालें या कसार को सूखे नारियल (गोला) में भरकर शनिवार प्रातः जंगल में पीपल, बरगद, पिलखन या शमीं वृक्ष की जड़ में दबायें, पूरा नारियल जमीन में दबा रहे, केवल मुॅंह खुला हो, जहॉं कसार भरा है । यह प्रयोग ग्रीष्म या वर्षा ऋतु में करें, क्रूर ग्रहों की शक्तियॉं शान्त होंगीं ।
पक्षी – उक्त जीवों के अतिरिक्त पक्षियों जैसे कौआ, तोता, कबूतर आदि को भी दाना डालने को शास्त्रों में कहा गया है ।
कौआ – पितृपक्ष में गाय, कुत्ता, चींटी के अतिरिक्त कौए को भी ग्रास निकालने का नियम है । कौए के विषय में वाल्मीकि रामायण मं एक कथा वर्णित है कि पितृपक्ष में कौए को खाना खिलाने से पितृ क्यों प्रसन्न होते हैं ।
कहा जाता है कि एक बार सीताजी दोपहर के समय घर के बाहर बैठी थी और श्री राम उनकी गोद में सिर रख कर झपकी ले रहे थे । उसी समय एक कौआ आकर सीताजी पर मंडराने लगा । सीताजी डर कर हिलीं तो श्रीराम की नींद खुल गयी । श्रीराम ने सीताजी से पूछा कि उन्होंने हिल कर उन्हें क्यों उठा दिया तो सीताजी बोलीं कि कौऐ के मंडराने के कारण वे डर गयी थीं । श्रीराम कौए को देख कर पहचान गए कि वह तो राजा इंद्र के पुत्र जयंत हैं और उनकी सीताजी पर गलत दृष्टि है । श्रीराम ने क्रोधित होकर तीर-धनुष उठा लिया । जयंत डर गया और क्षमा याचना करने लगा । श्रीराम ने कहा कि मैं तुम्हें मारूॅंगा नहीं परन्तु तुम्हारे दोष का दण्ड तुम्हें अवश्य मिलेगा । अब से तुम एक ही ऑंख से देख पाओंगे । दूसरी ऑंख, जिसमें ज्योति नहीं होगी, उससे तुम पित्रों की उस दुनिया को देख पाओगे जिसे साधारण जीव नहीं देख सकते । पितृपक्ष में जो भी तुम्हें भोजन कराएगा उसके अतृप्त पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी ।
कौए को नियमित भोजन कराने से मंगल, राहु, शनि जैसे क्रूर ग्रहों का युति जनित फलों का शमन होता है ।
तोते को शुक्र एवं बुध ग्रह का द्योतक माना गया है । तोते को पिंजरे में बंद करने से बुघ एवं शुक्र ग्रह खराब होते हैं । संतान पर कष्ट आता है । जिन परिवारों में संतान होने मे कठिनाई आती हैं, उन्हें तोते को कदापि कैद नहीं करना चाहिए ।
कबूतर को देव स्थान या अरण्य में मुक्त करने से बृहस्पति अच्छा फल देते हैं । जिनका बृहस्पति अस्त हो, उन्हें भी बृहस्पति को जागृत करने के लिए कबूतर को दाना डालना चाहिए ।
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ग्रीष्मकाल में पशुओं और पक्षियों के लिए जल के पात्र अवश्य रखने चाहिए ।
आज के युग में इन्हीं संस्कारों को भूलने के कारण हमारी दुधारू गायें भी कूड़ों के ढेर पर प्लास्टिक खाने और नालियों का पानी पीने को विवश हैं जिसका दण्ड हम उनका दूध सेवन कर भोगते हैं ।
देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमारे चुने गये प्रतिनिधि शासन करते हैं, और उन्हें शासन करने के लिए और जनता को आवश्यक सुविधाए उपलब्ध कराने के लिए जनता से कर लेना पडता है और हम आम नागरिक अपनी आय से कुछ प्रतिशत सरकार को कर के रूप् में देते हैं क्योंकि सरकार को चलाना हमारे हित में है । उस प्रकार प्रकृति रूपी सरकार को भी हमें अच्छी तरह से चलने के लिए सहायता करनी चाहिए ।