प्रस्तुत पक्तियों में कवियत्री समाज से याचना कर रही है की नारी को उसका सम्मान वापस दिया जाये, नारी जो एक शक्ति हैं जो निस्वार्थ सबके लिए कार्य करती हैं, फिर भी ना जाने क्यों वो प्रशंसा का पात्र नही बनती। उसके गौरव पे ये समाज कीचड़ उछालता आया हैं, माना लोगो को अपनी गलतियों का एहसास होता हैं लेकिन तब तक नारी अंदर से टूट कर बिखर जाती हैं.
एक अच्छी नारी को आभूषण, रुपये आदि की ज़रूरत नहीं वह तो सिर्फ समाज से अपना खोया हुआ सम्मान चाहतीं हैं। जिस सच्चाई के साथ इतिहास के पन्नो में पुरुष के नाम जगमगाते हैं, फिर क्यों औरतों के बलिदान का विवरण नहीं होता. इस समाज को ज़रूरत है औरत की शक्ति को जानने की।
अब आप इन पक्तियों का आनंद ले।
मेहनत अगर करता है मर्द,
तो नारी भी किसी से कम नहीं।
करके बड़े-बड़े बलिदान, प्रशंसा का पात्र भी नही बनती,
फिर भी उसको, कोई गम नहीं।
राम ने युद्ध कर,
दुनियाँ को जीता।
बिना लड़े ही, सब के दिल पर, जो छा गई।
ऐसी थी हमारी सीता।
कर्म का रास्ता अगर बुद्ध ने दिखलाया।
उस रास्ते को ढूंढने में,
यशोधरा ने भी, उनका साथ, था निभाया।
फिर क्यों इतिहास के पन्ने,
पुरुषों के ज़्यादा गुण-गान गाते हैं।
क्यों औरतों के बलिदान,
उन पन्नों में इतने उभर के नही आते हैं??
जो जितना सहे,
वही क्यों इतनी ठोकरें खाता हैं।
जिसके मन में जो आये,
वो सीधे को ही सुनाके चला जाता हैं।
अपनी मर्ज़ी से कोई रह नहीं सकता,
आज भी नारी को, कोई अपना नहीं लगता
क्यूंकि समाज का ये नियम, नारी को नहीं बक्शता।
अपनी परेशानियाँ तो हर कोई समझता हैं।
दूसरों के दुखों में भी जो दुखी हो जाये,
वही इतिहास के पन्नों में चमकता हैं।
नारी के गुणों को भी आने दो उन इतिहास के पन्ना में,
नारी को बस इसी की आवश्यकता हैं।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com.