सब अपना-अपना हिसाब लेने आते है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को ये समझाना चाह रही है कि इस दुनियां में हम सब ही यहाँ बस कुछ ही पल के मेहमान है क्योंकि जब जाने का समय आता है तब सब अपना-अपना हिसाब लेने आते है ये शरीर हमारा पांच तत्त्व में मिल जाता है.

अपना-अपना हिसाब

हमारे रिश्ते नाते सब यही रह जाते है। इन बातो की गहराई का अर्थ बस तब तक ही समझ में आता है जब हम उस माहौल में होते है लेकिन फिर कुछ दिन बाद हम इस माया की दुनियां में उलझ जाते है हम ये बात एक पल को भी नहीं सोचते की एक दिन हमारा भी यही होना है और यहाँ बनाई हर चीज़ हमे यही छोड़ के जानी है अगर वक़्त रहते हर इंसान कर्मो की गहराई को समझ जाए तो कभी किसी के घर में लड़ाई झगड़े नहीं होंगे.याद रखना दोस्तों बस अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ ईमानदारी से निभाओ क्या पता कल हो न हो…?

अब आप इस कविता का आनंद ले…

इस शरीर के मिट जाने पर,
सब अपना-अपना हिसाब लेने आते है.
हमारे अस्तित्व्य की पहचान,
ये बस हमे छोड़ कर सबको कराते है.
हर एक व्यक्ति के अंदर बस कुछ पल को,
वैराग्य की अग्नि ये जलाते है.
फिर उस क्षण को भूल हम इस माया की दुनियां
में उलझ जाते है.
इस दुनियां में कोई नहीं किसीका,
केवल कर्म ही अपना मूल्य धन है.
इस बात की गहराई को भूल,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति कितनी अन-बन है.
कोई तो समझदारी दिखाकर,
प्यार का दिया जलादो.
अपने अच्छे कर्मो द्वारा,
तुम भी इस दुनियां में अपनी एक अनोखी पहचान बनादो.

धन्यवाद।

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