राजस्थान की रेतीली जमीन पर फसल की पैदावार कम होती हैं पर इस रेतीली जमीन पर वीर योद्धा बहुत पैदा हुए है। जब भी देश को रक्त की जरूरत पड़ी है, तो इस मरूभूमि ने अपने लाल देश को दिए है। जब भी कोई भारत का इतिहास खोलकर देखता है, तो राजस्थान की वीरधरा पर पैदा होने वाले वीरों के स्वर्णिम अक्षरों में लिखे इतिहास को जरूर पढ़ता है। और इन्ही वीरों के साथ अग्रिम पंक्ति में मिलते है, भरतपुर रियासत के महाराजा सूरजमल।महाराज सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 को महाराज बदन सिंह के घर माता रानी देवकी की कोख से हुई। और 13 फरवरी के दिन मिला जाटों को अपने भविष्य का प्लेटो। इतिहासकार बताते है कि इस जाट राजा को कोई युद्ध में हरा नही पाया था।
1 जनवरी 1750 को हुए युद्ध में मीर बख्शी को इतना बुरी तरह पराजित किया कि मीर बख्शी ने घुटने तो टेके ही साथ में समझौता करते हुए कहा कि आपके राज्य से ना तो पीपल के पेड़ काटे जाएंगे, ना गौहत्या होगी और ना ही मंदिरों को किसी प्रकार की क्षति पहुचाई जाएंगी। एक समय एक मुस्लिम बादशाह को तलवार के बल पर इस प्रकार अपने सामने झुका देने पर एक कवि ने महाराजा सूरजमल के सम्मान में पक्तियां लिखी
“ना सही जाटणी ने व्यर्थ प्रसव की पीर, गर्भ से उसके जन्मा सूरजमल सा वीर”
इतिहास में एक जगह वर्णन मिलता है, महाराज सूरजमल के कट्टर शत्रु गाजीउद्दीनखां ने बरारी के घाट पर हुए युद्ध में जाटो की वीरता और ताकत को देखकर सूरजमल के समक्ष आकर आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध के बाद इतिहासकार वेदेल लिखते है कि मुग़ल सत्ता का गर्वीला और भयावह दैत्य धरासायी हो चूका था, मुग़ल अहंकार की इतनी कठोर और इतनी सटीक पराजय इससे पहले कभी नही हुई थी। इस प्रकार की स्थिति पैदा करने वाले सूरजमल के लिए एक कवि द्वारा रचित चार पक्तियां याद आ जाती हैं-
“तीर चलें, तलवार चलें, चलें कटारें इशारों तैं, मुग़ल भी नहीं बच सके, जाट भरतपुर आळे तैं”
महाराजा सूरजमल के नेतृत्व में विलास और आडंबर से दूर, कर्मण्य, शौर्यपरायण, निर्बल की सहायक, शरणागत की रक्षक, प्रजावत्सल, हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक, राष्ट्रवादी जाट-सत्ता की स्थापना हुई। 25 दिसम्बर 1763 को महाराजा सूरजमल वीरगति को प्राप्त हो गए। सूरजमल अपने पीछे छोड़ कर चले गए एक शौर्य से भरा इतिहास। और चले गए भारत में ऐसे राज्य की नींव डाल कर, एक ऐसे गढ़ को बनवाकर जिसे आज तक कोई जीत नही पाया।
आज महाराजा सूरजमल जैसे योद्धाओं का बलिदान ही है, जो जाटो के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखकर अलग पहचान दिलवा दी और आज उन्ही योद्धाओं की बदौलत जाटो का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। हमे गर्व है,ऐसे योद्धा पर जो हमे इतना गौरवशाली इतिहास दिया।
“बलिदान दिवस पर नमन है, महाराजा सूरजमल को”
[स्रोत- विनोद रुलानिया]