साहेब! हमारा आधार कार्ड बन गया.
हां बन गया, ले जाओ.
धन्यवाद साहेब! अरे बाबू आपसे कहा था कि फोटो में थोड़ा फोकस देना, देखो तो कैसा आ रहा है काला काला.
अरे भाई! यह सरकारी काम है यह तो ऐसा ही रहेगा.
साहेब! वो बात तो सही है मगर जन्मतिथि भी गड़बड़ा रही है.
कहां गड़बड़ा रही है?
मेरी जन्मतिथि तो 17 सितंबर 1980 है, और इसमें 1 जनवरी 1980 लिखा है.
अबे तुम्हें नहीं पता, तुम 1 जनवरी को ही पैदा हुए थे.
अरे साहब! वो बात तो ठीक है मगर पहले से ही मेरे खानदान के 4 आदमियों की जन्मतिथि भी 1 जनवरी ही है.
हा हा हा हा हा हा हा हा हा, अरे तो क्या हो गया तुम भी इसी लाइन में शामिल हो जाओ, देखो जो हुआ है वो बहुत ही अच्छा हुआ हैं.
वो कैसे साहेब?
देखो, अगर तुम्हारी जन्मतिथि अलग कर देते तो तुमको कितनी सारी चीजे याद रखनी पड़ती, अब सबकी 1 जनवरी हैं तो बस एक सन ही तो याद रखना हैं.
साहेब! अब हम इतने पढ़े-लिखे तो हैं नहीं, अब जो आपने किया होगा वो सही ही किया होगा.
अरे! हम तो यही कह रहे हैं जबसे समझ ही नहीं रहे हो.
साहेब! इसे बदलवाना तो नहीं पड़ेगा?
अबे तुम जाओ, हम किस लिए बैठे हैं यहां.
ठीक हैं साहेब! नमस्ते
[Image Source : ANI]
इस वाक्य को पढ़कर शायद आपको हंसी आ रही हो मगर यह आज के समय की गंभीर स्थिति बना हुआ है. हालही में किए गए एक शोध के अनुसार उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जिले में स्थित गेंडीखाता गांव की आबादी लगभग 5000 है, इस गांव में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं और ग्रामीणों को यह भी नहीं पता कि आधार कार्ड बनवाने में किन किन कागजात की जरूरत पड़ती है और क्या-क्या डिटेल भरी जाती है.
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इस 5000 आबादी के गांव में 800 लोगों की जन्मतिथि आधार कार्ड में 1 जनवरी दी गई है यह कोई मामूली बात नहीं है. अगर गांव वाले अशिक्षित हैं या कम पढ़े लिखे हैं तो ऐसे में आधार कार्ड बनाने वाले कर्मचारियों की यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि उनकी डिटेल को सही तरीके से भरा जाए मगर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. अधिकारियों को अपने काम करने की और घर जाने कितनी जल्दी होती है कि कोई कभी भी पैदा हुए उन्हें तो बस यही कहना है “अबे तुम्हें नहीं पता तुम 1 जनवरी को ही पैदा हुए थे”.