इंतज़ार कभी रहता था

kabhi intzar rahta tha

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को पुराना समय याद दिला रही है जब लोग एक दूसरे की चिठ्ठी का इंतज़ार करा करते थे , दूर रहकर भी सब अपनों पे मरते थे। आज मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग ने सबको पास तो कर दिया है लेकिन वो इंतज़ार का एहसास जो पहले कभी हुआ करता था अब वो नहीं रहा। आज हमे पल पल की खबर मिलती है। इससे हमारे विचार और सोचनीय हो हो गये है। क्योंकि पहले हम सिर्फ अपनों की खबर रखते थे आज दोस्त या दोस्त का दोस्त उसकी भी खबर रखते है। उस इंतज़ार में भी जो सुकून था और जो प्यार बना रहता था वो कही खो गया है।

इसमें कोई शक नहीं की आज ज़माना बदल गया है सोच बदलके और अच्छी हुई है। बदलाव से बहुत भला हुआ है लोगो का लेकिन ये भी सच है कि अब छोटी-छोटी बात भी आग ही तरह फैलती है। अपनी पर्सनल लाइफ छुपाना मुश्किल हो गया है। किसी भी टेक्नोलॉजी का अगर हम सही प्रयोग करे तो कुछ गलत नहीं लेकिन कभी-कभी येही बदलाव घातक बन जाता है। बहुत सोच समझ कर डाले आप जो भी सोशल मीडिया साइट पर डाल रहे है। याद रहे दुनियाँ आपको आपके विचारों से ही जानेगी।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

इंतज़ार कभी रहता था ,
चिठ्ठी में छुपे हमारे सवालों के जवाब का।
हाले दिल तो एक सा रहता,
चाहें आम इंसान हो या नवाब का।
इंतज़ार की घड़ी में, दिल झटपटाता था।
पैगाम मिल, फिर इस दिल को सुकून मिल जाता था।

इंतज़ार कभी रहता था,
डाकिये की डाक का,
इंतज़ार में निकलता, सारा पानी आँख का।
उस आँख ने अपनी चुप्पी तब साधी।
पढ़ ली जब उन अँखियों ने वो चिठ्ठी आधी।

इंतज़ार कभी रहता था,
हमारे जवाब अपनों तक पहुँच जाने का।
ख्याल तभी तो आता था,
हमारे अपनों को हमारे पास आने का।
इंतज़ार की चिलमन,दोनों तरफ जलती थी।
अपनों की दूरी तो सबको खलती थी।

इंतज़ार कभी रहता था
इंतज़ार कभी रहता था।

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