इन पक्तियों के ज़रिये कवियत्री दुनियाँ को घमंड ना करने का उपदेश दे रही हैं। वह चाहतीं है कि दुनियाँ ये समझे की समय और कर्म बहुत ही बलवान हैं एक पल में दुनियाँ इधर की उधर हो जाती हैं। आज कोई सफलता की उचाई पर हैं तो कल वो ही नीचे भी आ सकता हैं इसलिए सफल व्यक्ति वहीं हैं जो सफलता पाकर भी कभी घमंड ना करे बल्कि अपनी सफलता से दूसरे के लिए एक प्रेरणा बन जाये।
सफलता की राह में जो घमंड करता है वो दुनियाँ की नज़र में एक दिन गिर जाता हैं, और फिर उसका खुद का अंतर मन उसे जीने नहीं देता और वो आत्म ग्लानि में पल पल मरता रहता हैं। कवियत्री ने इस में यह भी बताया हैं की अगर मनुष्य वक़्त रहते अपनी गलतियों को सुधार ले तो वही मनुष्य अपनी और दुनियाँ दोनों की नज़रो में ऊंचा हो सकता है ,लेकिन वो बदलाव उसे अंदर से लाना होगा उसमे कोई दिखावा ना हो।
पल भर में,
कोई राजा से फ़कीर बन जाता हैं।
अपने हलात को देख,
फिर उसका मन घबराता हैं।
इस कश्मकश में उलझ,
वो बस ये सोचता रह जाता हैं।
सफलता पाकर जो मैं,
घमंड ना करता।
अपने को समझ यू बेबस
मैं हर रोज़ ना मरता।
करते थे जो सलाम,
आज वो रुख भी नही मिलाते हैं।
मेरी गलती, मुझे याद दिलाकर,
वो मुझपर अक्सर चिल्लाते हैं।
घमंड का चोला,
जो कभी मैंने ओड़ा था.
अपनी महानता के आगे,
मैंने दुनियाँ से मुँह मोड़ा था।
आज वही व्यवहार,
क्यों मेरे सामने आगया।
ये कैसा घमंड था मुझमे,
जो मुझमे रहकर मुझे ही खा गया।
अपने अनुभव से,
आज मैं तुमको कुछ सिखाता हूँ।
अब खुदमे ही कर परिवर्तन।
खुदकी अच्छाई को जगाता हूँ।
वक़्त रहते मैंने ये सब जान लिया।
खुदकी गलतियों की वजह से ही भुगता,
अब ये भी मैंने मान लिया।
हर सास मेरी अब मुझे,
अच्छाई की तरफ बढ़ायेगी।
मेरी सोई हुई किस्मत भी,
अब फिर से जग जायेगी।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com