धर्म के बारे में हमारी रूचि केवल विभिन्न दैवीय वाहनों के वजह से है.
जैसे, विष्णु जी का गरूण, शिव का नंदी, ब्रम्हा का हंस, इन्द्र का हाथी, यमराज का भैसा, यहां तक कि कुकुर गदहा जैसे कम माइलेज वाले फोर व्हीलर भी किसी न किसी देवी-देवता के लिए आवंटित है.
कल्की अवतार अभी हुआ नहीं है फिर भी उस अवतार के लिए घोड़ा आरक्षित हैं. देवी-देवताओं में भी जिसके पास जितनी भौकाली सवारी उसका क्रेज उतना ही ज्यादा है.
दुर्गा जी शेर पर ड्राइविंग करती है इसलिए उनका महत्व अन्य समकालीन डोमेस्टिक देवियों से ज्यादा है, विष्णु जी शेषनाग पर सोते हैं इसलिए वो जगत के पालनकर्ता है, शेर और शेषनाग को साधने वाला इतना सहिष्णु नहीं होगा यही सोचकर जिसको भी भारत में असहिष्णुता का लेबल पता करना होता है वो इनके उपर सवाल खड़ा करने की कोशिश करता है.
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शाकाहारी जानवरों को सवारी बनाने वाले महत्वपूर्ण देवी-देवताओं को भी उतना महत्व नहीं दिया गया, जैसे अपने शंकर जी है जो बस एक बैल डमरू और त्रिशूल के साथ जीवनयापन करते हैं उनकी छवि को कभी किसी ने बिगाड़ने की कोशिश नहीं की क्योंकि वो थोड़े जमीनी स्तर के देवता हैं जिनके तक बात आसानी से पहुंच सकती है इसीलिए मान्यता है कि शंकर जी तो भोले हैं, भोले वाली अफवाह उनके सर्वसुलभ होने के नाते है किसी को पता नहीं है कि ब्रम्हलोक कहा है या बैकुंठ कहा है? मगर हिमालय सबको पता है इसीलिए दुष्टजन शंकर जी पर ध्यान नहीं देते और डरते हैं कि कहीं शंकर जी का निशाना अच्छा हुआ और हिमालय से चलाकर मारा गया त्रिशूल ठीक उनकी तशरीफ़ में जमा हो गया तो क्या होगा.
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ब्रम्हा जी के साथ विडंबना ये है कि एक तो उनकी लोकेशन इनविजिबल है उपर से उनकी सवारी हंश की छवि भी कोई हाहाकारी नहीं है इसलिए इतने महत्वपूर्ण पद पर होते हुए भी ब्रम्हा जी की वैल्यू उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए.
अपने शनी देव की भी दहशत के मामले में रेटिंग अंडर टेन पर ही है उसकी वजह उनके सवारी कौवा का होना है, कौवा हर घर में ताक-झांक करता है इसलिए शनि की दृष्टि ही सीधी टेढ़ी होने की अफवाहें मार्केट में दौड़ती हैं…