भिलाई : इशारों की भाषा में एक-दूसरे से बातें करते, खुश है यह गरीब परिवार मगर इस परिवार की ‘न पंचायत ने सुध ली, न सरकार ने; न जमीन ना आवास, सिर्फ मजदूरी ही विकल्प’। हम आपको बताने जा रहे हैं छत्तीसगढ़ के छ: सदस्यीय परिवार की जो अभावों के बीच अपना जीवन-यापन करता आ रहा हैं। छत्तीसगढ़ के, दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर ग्राम पंचायत भरनी विकासखंड धमधा में पदुमलाल आडिल का 6 सदस्यों वाला परिवार न ही, बोल सकता है और न ही, सुन सकता है। वहीं, परिवार के गुजारे के लिए न, जमीन है और न ही, काम।ग्राम पंचायत भरनी में लगभग 20 वर्षो से निवासरत अनुसूचित जाति परिवार, पदुमलाल आडिल (60), पत्नी बुतकुवर (55), बेटी कु. गोमती (20), बेटा लाखन (18), जयपाल (16) एवं छोटी बेटी पिंगला (14) का परिवार, आवास-विहीन किसी भी शासकीय लाभ से वंचित गुजर-बसर कर रहा है। पदुमलाल अपने इस 6 सदस्यो के परिवार के साथ, बड़े बेटे गोपी (27) एवं बहु के घर मे अलग रहते हैं। वहीं, गोपी भी साधारण मुक-बधिर है जो 35 किलोमीटर दूर भिलाई जाकर मिस्री कार्य (मजदूरी) कर अपना गुजर चलाता है। जिन्हे भी सरकार से कोई मदद नही मिली।
इस परिवार का ग्राम भरनी में मतदाता सूची में नाम, सभी का आधार कार्ड, शासन द्वारा गैस एवं राशन कार्ड क्रमांक – 43020213100716 है। जो, अति गरीब की श्रेणी मे नही आता! अतः मनरेगा का जाॅब-कार्ड नहीं बना है ? जो उनके परिवार भरण-पोषन का उपाय होता! स्मार्ट कार्ड नहीं बना है! जो उनके परिवार के स्वास्थ्य जांच का उपाय बनता ? और न ही, खुद का आवास ही है! जो उनके परिवार के रहन-बसन का उपाय होता?
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गोपी को उनके मामा आसकरण के द्वारा, स्वयं के जमीन में घर बना कर दिया गया है। जिसमें गोपी के पिता पदुमलाल का परिवार भी रहता है। जबकि पंचायत द्वारा गोपी और पदुमलाल दोनो से घर टैक्स लिया जाता है! यहाँ गोपी से टैक्स लिया जाना तो ठीक है, लेकिन पदुमलाल से कैसा घर-टैक्स? जिनके नाम से घर है ही नही! जबकि गोपी के निवास में शौचालय निर्माण हेतु प्रक्रिया पूर्ण कर दी गई है, जहाँ गड्ढा खोदा गया, गिट्टी, सीमेंट, ईट लाई गयी ; बस निर्माण कार्य के समय ही उक्त जगह को ग्राम पटवारी के निरिक्षण के बाद घास जमीन बतलाकर निर्माण कार्य रद्द कर दिया गया ! वहां पर अभी गड्ढा तो है, शेष सामान पंचायत द्वारा उठवा लिया गया है ? ऐसा नहीं कि, पदुमलाल के परिवार का स्वास्थ्य जांच करवाने का प्रयास नही हुआ, ग्राम सरपंच खेमिन बाई नरेंद्र कुमार पार्वे बतलाते हैं, उनके द्वारा रायपुर अस्पताल एम्स ले जाकर इलाज करवाया गया। जहाँ इन्हे जिला अस्पताल दुर्ग रेफर कर, यहीं से इलाज कराने की सलाह दी गई। जहाँ जिला अस्पताल दुर्ग के डॉक्टरो ने पूर्णतः मुक-श्रवण बाधित नही मानते हुए इलाज की कोई प्रक्रिया नहीं की गई! जहाँ सरपंच बताते हैं, इसके बाद भी जिला अस्पताल में 2 से 3 बार जाकर प्रयास किया गया । परन्तु यह प्रयास भी असफल रहा ।
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इस परिवार के मुखिया, पदुमलाल एवं उनके साला आसकरण के द्वारा इस प्रतिनिधी को बतलाया गया कि, पदुमलाल के माता-पिता एवं अन्य भाई-बहन सामान्य हैं। वहीं पदुमलाल लाल की पत्नी बुतकुवर सहित इनके दो बहने, सुंदरी बाई जो गांव में ही रहती है। एवं राधा बाई रेंगाकठेरा, जालबांधा (राजनांदगांव) भी मुक-श्रवण बाधित हैंं। जबकि, बुतकुवर के माता-पिता और सुंदरी बाई और राधा बाई के बच्चे सामान्य है। इस परिवार का सरकारी तंत्र ने मुआयना तो किया, लेकिन इलाज नहीं किया ? जहाँ इस हरिजन (अनुसूचित जाति) परिवार की संपूर्ण जानकारी, जो यहाँ दी जा रही है। यह सरकार के नुमाइंदो को भी पता है! लेकिन इनके पूर्ण समाधान का उपाय नहीं किया गया ?
पंचायत द्वारा परिवार की मुखिया पदुमलाल के नाम से मनरेगा का जाॅब कार्ड बनाया जाना चाहिए था ? जो नहीं किया गया! जबकि, पदुमलाल बताते हैं, जब वे और उनकी पत्नी ग्राम पंचायत के मनरेगा कार्य में सामिल होने गये तो उन्हे यह कहकर कि, तुम्हारा नाम लिस्ट में नही है ! काम से भगा दिया गया? जबकि, 6 सदस्यो के परिवार को पालना कितना मुश्किल है, यह आम जन-मानस के समझ में भी आ सकता है।
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पदुमलाल चौथी कक्षा पास है, लकवा ग्रस्त है, सुन नहीं सकता लेकिन, इसरों के माध्यम से लडखडाकर बोल सकता है। पत्नी बुतकुवर और चारो बच्चे नही बोल सकते, और न ही, सुन सकते हैं। वहीं बच्चो की पढ़ाई लिखाई भी स्कूल में नही हो पाई ! इस पर शिक्षा विभाग और सरकारी तंत्र ने भी ध्यान नही दिया ? पदुमलाल के अनुसार कुछ वर्ष पहले उन्हे लगभग 10 हजार रूपए टेलीविजन हेतु मिला था, जिसे खरीद कर पंचायत ने दिया है। वहीं, अभी गैस कनेक्शन प्राप्त हुआ है। पत्नी बुतकुवर और पांच बच्चे मुक-श्रवण बाधित है, जिन्हे श्रवण यंत्र मिलना था ? नहीं मिला ! क्या यहाँ, पारिवारिक परम्परा चलती रहेगी ! यह भी प्रश्न है ?
इस गरीब परिवार पर, जो स्वंय के भरण-पोषण बड़े मुस्किल से कर रही है, कि ईलाज के लिए सरकारी महकमे का ध्यान कभी नही गया। जबकि, पंचायत विभाग गरीबी-रेखा को ऊपर उठाने “सब के हाथ मे काम” ; शिक्षा विभाग “सबको शिक्षा” दिलाने और स्वास्थ्य विभाग “सबको स्वास्थ्य” – “हमर स्वास्थ्य – हमर हाथ” जैसे कई महती योजनाएँ एवं कार्यक्रम राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे है, परंतु इस परिवार पर अभी तक ध्यान नही आया।।
[स्रोत- घनश्याम जी. बैरागी]