प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इस दुनियाँ में अगर हमारी पीड़ा कोई समझ सकता है तो वो सिर्फ हम खुद है इस दुनियाँ में सब अकेले आये है और सबको अकेले ही जाना है हम यहाँ बस सबके साथ रहते है। अपनी पीड़ा हम सिर्फ किसी को बता ही तो सकते है लेकिन सहना तो हमे अकेले ही होता है।
कवियत्री सोचती है कि ये जीवन एक झरने की भाती है और हम सब यहाँ अपने-अपने शरीर में रहकर बस बहते ही जा रहे है सबको अपने दम पर अपनी मंज़िल ढूंढ़नी होती है। याद रखना कोई किसी के साथ नहीं जाता यहाँ हम सब बस अपना मकसद लेकर आये है, जिसे हमे सिर्फ अपने दम पर ही पूरा करना है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
कोई किसी के साथ नहीं जाता,
हम बस यहाँ सबके साथ में रहते है।
अपनी आप बीती हम अक्सर सबसे कहते है।
इस गहरे ज्ञान को समझ हम बस अपने में ही रहते है।
अपने दु:खो की पीड़ा हम अकेले ही तो सहते है।
जीवन के इस झरने में हम सब साथ में मिलकर बहते है।
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सबको अपनी मंज़िल खुदके,
दमपर ही तो, तय करनी होती है.
कुछ बड़ा हासिल करने की आरज़ू में,
इंसान की रूह भी उन सपनो में खोती है।
एहसास कर खुदकी क्षमताये,
इंसान की अखियाँ भी, फिर ख़ुशी में रोती है।
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एक नाव पर सवार, कोई पहले तो कोई बाद में,
अपनी मंज़िल को पाकर, उतर जाता है।
अपनों में ही रहकर, बहुत कम लोगो को,
इस बात पर ख्याल आता है।
ये मेरे अपने मेरे जीवन भर के साथी नहीं।
इस बात को जो वक़्त पर समझे,
वो जीवन में ठोकर खाकर भी, ठोकर खाते नहीं।
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क्योंकि कोई किसी के साथ नहीं जाता,
हम बस यहाँ सबके साथ में रहते है।
धन्यवाद