सर्वप्रथम हमें यह सोचना है कि क्यों हमें इस विषय पर बात करनी की आवश्यकता पड़ी. अभी बीते दिनों एक चर्चा जोरो से चली की हमारे देश के इतिहास में ज्यादा योगदान अथवा बलिदान किसके द्वारा दिया गया है. पहली बात तो यह है कि इस विषय का हम आकलन क्यों कर रहे हैं. क्या हमें इसके बारे में पहले से याद नहीं है या हमें जो जानकारियां अपने किताबों से या उस विषय के अध्ययन से पता चली थी उनमें सच और झूठ का मिश्रण सही तरह से नहीं दर्शाया गया था. अभी कुछ दिनों पहले मैंने एक BBC News का आर्टिकल पढ़ा जिसका विषय था राष्ट्रनायक कौन अकबर या महाराणा प्रताप. अब मुझे समझ में ये नहीं आ रहा कि हम इस विषय पर विश्लेषण क्यों कर रहे हैं खैर अगर ऐसा कर रहे हो तो यह जरूरी हो जाता है की हम सत्य के इतने करीब हो जितनी की जानकारियां उपलब्ध है या इतिहास में बताया गया है. अब समस्या यह है कि इन सब विषयों पर जो लोग आज के समय में अपने विचार रखते हैं वह या तो किसी खास उद्देश्य से अथवा अपनी द्वारा एकत्रित जानकारी के बारे में ही बोलते हैं. यदि आप बीबीसी के न्यूज़ को गहराई से पढ़े तो आप पाएंगे कि उसमे आदित्यनाथ एवं मोदी के बारे में या उनके बयानों को ज्यादा तरजीह दी गयी है अपितु कि इस बात के कि वास्तव में महराणा प्रताप या अकबर कौन थें या उनका हमारे राष्ट्रनिर्माण में क्या योगदान था. तो सबसे पहले यहां पर हम यह जान लेते हैं की वास्तव में महाराणा प्रताप या अकबर कौन थे और हिंदुस्तान के इतिहास में उनका क्या योगदान है. वैसे तो आप सबको बहुत कुछ पहले से ही इन लोगों के बारे में पता होगा लेकिन हम यहां पर कोशिश कर रहे हैं कि हम एक सत्य एवं निष्पछ विश्लेषण और संक्षिप्त विचार यहां पर रखें.
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महाराणा प्रताप संक्षिप्त परिचय:
जन्म: 9 मई 1540, कुम्भलगढ दुर्ग – राजस्थान
मृत्यु: 29 जनवरी 1597, चावंड – राजस्थान
शासनकाल: 1572 – 1597
राज घराना: सिसोदिया
पिता: उदयसिंह द्वितीय
माता: महाराणी जयवंताबाई
धर्म: सनातन धर्म
के लिए जाना जाता है: हल्दीघाटी के युद्ध, अकबर के साथ सैद्धांतिक संघर्ष, घोड़ा चेतक, वीरता एवं दृढ प्रण.
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अकबर संक्षिप्त परिचय:
जन्म: 15 अक्टूबर 1542, उमेरकोट – पकिस्तान
मृत्यु: 27 अक्टूबर 1605, फतेहपुर सिकरी – हिंदुस्तान
शासनकाल: 1556 –1605
राज घराना: तिमुर
पिता: हुमायूँ
माता: हमीदा बानो बेगम
धर्म: मुग़ल
के लिए जाना जाता है: अकबर-ऐ-आज़म, हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान, देश की कला एवं संस्कृति पर प्रभाव, दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना.
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अब अगर हम बात करें इस ऊपर दिए हुए विवरण के बारे में तो हमें स्वतः पता चल जाता है कि यदि एक ही शासनकाल अवधि के दौरान दो करीबी शासक मौजूद थे तो उनमें आपस के सैद्धांतिक और वैचारिक विरोधाभास का होना एक साधारण परिस्थिति रही होगी तो आज हम क्यों इस मुद्दे को उठा रहे हैं या उसके साथ अपने विचारों एवं परिस्थितियों को संबंधित बताने की कोशिश कर रहे. यदि यह हमारे लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है तो क्यों ना हम इसके लिए उन इतिहासकारों की बातों का अनुसरण करें जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही इन विषयों के अध्ययन में और इनके गूढ़ विवरण को जानने में व्यतीत किया है. परंतु ऐसा होता नहीं है और हम सिर्फ उस तरफ ही ध्यान दे पाते हैं जिस तरफ हमारे राजनेता या पत्रकार वर्ग अपने प्रत्यक्ष या परोक्ष फायदे के लिए इन मुद्दों को उठाते है. आज मुझे एक बात याद आ रही थी किसी ने कहा था अगर आपको किसी इंसान का असली चेहरा देखना है तो उसे पावर दे कर देखो ये लाइन यहां पर एकदम सटीक बैठती है. जाने अनजाने में ही सही लेकिन कहीं ना कहीं हमारी सत्ताधारी पार्टियों ने इस तरह के विषयों पर ध्यान खींच कर अपने ही लोगों में और अपने देश के प्रति गलत अवधारणाओं को जन्म दिया है.
क्या फर्क पड़ जाएगा की यदि अकबर मुस्लिम वर्ग का ना होकर हिंदू रहा होता या महाराणा प्रताप एक मुग़ल कुल में जन्मे होते. अगर कोई मनुष्य महान होता है तो निश्चय ही उसका उसके धर्म या कुल का इसमें बस निमित्त मात्र का संयोग होता है. यहां पर महत्वपूर्ण विषय यह नहीं था कि कौन किस धर्म से है बल्कि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विषय यह होना चाहिए की उसने अपने चरित्र, कर्म एवं शासन से लोगों में किस तरह की प्रसिद्धि अर्जित की एवं उसका अपने देश और जनता से कितना प्यार था.
निष्कर्ष: इस लेख का मुख्य उद्देश्य यह था कि हम अपने विचारों को इस नजरिए से देखने के लिए प्रेरित करें जिससे कि हम उस विषय को आंतरिक और तकनीकी रुप से संबंधित कर सकें. यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी एवं अपने देश के प्रति कर्तव्य है की हम किसी भी विषय पर सुनी सुनाई या किसी अन्य के विचारो को फॉलो करने के बजाए अपनी दृष्टि और सच्चाई से अध्ययन करें.
Maharana Partap