वाराणसी को पूर्वांचल की सियासत की धुरी क्यों कहा जाता है ये बात 4 मार्च को साबित हो गया, पीएम और सीएम, इस तरह बनारस की सड़कों पर पहले कभी नहीं उतरे थे मोदी और अखिलेश महज कुछ किलोमीटर के फासले पर थे दोनों का सीधा सामना नहीं हुआ लेकिन ऐसी जोर-आजमाइश हुई, जो पहले कभी नहीं हुई थी।
वाराणसी में ऐसा आर-पार का संग्राम पहले कभी नहीं हुआ था काशी के कुरुक्षेत्र में बदलने की ऐसी तस्वीरें पहले कभी नहीं आई थी दुनिया ने बनारस के कई रंग देखे हैं, लेकिन ऐसा रंग कभी नहीं देखा होगा ऐसा मिजाज नहीं देखा होगा, ऐसा अंदाज कभी नहीं होगा जब शहर की सड़कों पर पीएम मोदी थे…राहुल गांधी थे और सीएम अखिलेश यादव थे।
दोपहर से शाम तक शहर में सियासी पारा ऐसा चढ़ा, .कि काशी गर्द के गुबार में डूब गई। सड़कों पर समर्थकों का सैलाब था। नेता बस की छत पर खड़े थे, और दूर-दूर तक खचाखच भरी सड़क पर नारेबाजी करते समर्थकों ने माहौल गरमा दिया, वाराणसी में इस बार कांटे की कैसी टक्कर है, ये बात पीएम मोदी के खुद सड़कों पर उतरने से साफ हो गई बीजेपी को जीत दिलाने के लिए यहां कई केंद्रीय मंत्री मौजूद थे, पार्टी के बड़े-बड़े नेता कैंप कर रहे थे,.इस बीच खुद पीएम मोदी ने मोर्चा संभाल लिया।
वाराणसी जिले में कुल 8 विधानसभा सीट है 2012 में बीजेपी इनमें से सिर्फ तीन सीट ही जीत पाई थी, ये सभी सीटें भी बनारस शहर की थी 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने विरोधियों को क्लीन स्वीम किया था, तब पूर्वांचल में मोदी की लहर चली थी… बनारस में मोदी की आंधी चली थी यही वजह है कि बनारस की बाजी जीतने के लिए खुद प्रधानमंत्री ने जोर लगा दिया है खुद सड़कों पर उतर आए।
बनारस की सड़कों पर एक तरफ खुद को यूपी का बेटा बताने वाले मोदी थे, तो दूसरी तरफ खुद को यूपी के अपने लड़के बताने वाले अखिलेश और राहुल। दोनों के रोड शो में जबर्दस्त हुजूम उमड़ा शहर के कई हिस्से में ये जनसैलाब जैसा दिखा अब सबकी नजर इस बात पर है कि 8 मार्च को जनता किसके माथे पर जीत का सेहरा बांधती है।