दिघलबैंक : जाने अनजाने में हम सब अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हम यहीं नही रुकते अपने साथ-साथ औरों को भी लपेट लेते हैं। ऐसी बात भी नही होती है कि हमे पता नही होता है। हम सब कुछ जानते हैं किंतु चंद पैसे के लिए लाखों का चूना लगवाने के तैयार रहते हैं। ये भी अजीब विडंबना है।आज इलाके के बाजारों में स्थित होटलों में जाकर देखें। किस कदर साफ-सफाई की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, इन होटल मालिकों से सीखें। मैं तो कह रहा हूँ कि लगे हाथ सरकार को इन होटलों में भी स्वच्छता अभियान चलाने की कवायद शुरू करनी चाहिये, ताकि इन होटल मालिकों का समय तथा पैसा दोनों बच सके।
आजकल प्रधानमंत्री उज्वला योजना के तहत हर घर को चूल्हा मुक्त करने का अभियान चला हुआ है। रसोई गैस सबों को मुफ्त मिल रहा है। किंतु इन होटल मालिकों को कौन समझाए कि उनके लिए भी योजनाए हैं। उनपर भी उक्त बातें लागू होती है। आज भी कई होटलों में कोयला वाले चूल्हे या भट्टी जलाई जाती है।जब कोयला जलता है, तो उससे निकलने वाले धुंए अत्यंत ही खतरनाक होते है। ऐसा लगता है जैसे कोई तीर नाक से घुसकर फेफड़ा को छेद कर रहा हो। वाकई कोयला से निकलने वाला ऐसा धुँआ किसी भी व्यक्ति को विचलित कर देता है। दुकानदार अपने साथ-साथ ग्राहकों के स्वास्थ्य को भी धोखा दे रहे हैं।
इसी तरह की दुकान में जाने का एक बार मुझे मौका मिला। काफी मुश्किल से चाय पी सका। मेरे साथ चिकित्सक डॉ अब्दुल्लाह भी थे। इस बाबत उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति कम से कम 10 से 8 वर्ष तक इस चूल्हे के सम्पर्क में रहता है तो उन्हें सिलिकोसिस नामक बीमारी होने का खतरा रहता है।यही नही साथ-साथ सांस लेने सम्बन्धी गम्भीर बीमारियां होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।
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अब एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि एक चूल्हे से जब इतना बड़ा खतरा हो सकता है तो इलाके में कई ईंट भट्ठों की चिमनिया हैं, जो बड़ी मात्रा में धुँवा रूपी बीमारियों को उगल रही हैं। इसका कुप्रभाव भी इलाके में साफ साफ देखने को मिल रहा है। मकई में दाने का कम आना, आमों का सड़ना, मंज़र कम आना, लोगों को चर्मरोग, जल का दूषित होना साफ-साफ प्रदूषण बढ़ने का संकेत दे रहा है।
समय रहते अगर कोई ठोस कदम नही उठाया गया तो वह दिन दूर नही जब गांवों में भी मैक्सिको, अमेरिका, चीन जैसे हालात पैदा हो जाएंगे, और लोगों को ऑक्सिजन भी खरीदते हुए देखा जाएगा।
[स्रोत- निर्मल कुमार]