भारत के संविधान की मूल भावना में आरक्षण उन लोगों के लिए है जो आर्थिक और सामाजिक रुप स बिछड़े हुए हैं उन पिछड़े हुए लोगों को मुख्यधारा में जोड़ा जाए । जब आरक्षण की व्यवस्था की गई तब के परिदृश्य में भारत के कुछ समुदाय अथवा जाति विशेष आर्थिक और सामाजिक रुप से पिछड़े होने के साथ-साथ छुआछूत हिंसा तथा सामाजिक तिरस्कार के भी शिकार थे ।
इसीलिए आरक्षण का आधार जातीयता को मान लिया गया था किंतु संविधान की मूल भावना यह नहीं थी कि चाहे कितना भी संपन्न और सामाजिक रुप से प्रबल व्यक्ति हो जाए, तो भी आरक्षण उसे इस आधार पर मिलता रहे कि वह किसी जाति विशेष में पैदा हुआ है । किंतु भारत की राजनीति या यूं कहा जाए कि राजनीतिक दलों की वोट नीति इस प्रकार की बन गई है । कि हर कीमत में वोट मिलना चाहिए न्याय अन्याय को दरकिनार अगर करना पड़े तो भी कोई बड़ी बात नहीं है ।
परिणाम यह हुआ कि जिन परिवारों में संपन्नता है जिनके मां बाप बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं और जिनके पास किसी भी प्रकार की सामाजिक तिरस्कार की गुंजाइश ही नहीं है बल्कि उन्हें यह साबित करने के लिए कि वह पिछड़ी जाति से अथवा आरक्षण लेने योग्य हैं इसके लिए एक कागज का टुकड़ा दिखाना पड़ता है ।
वेशभूषा, रहन -सहन, खान पान, उच्च स्तर पढ़ाई-लिखाई, आर्थिक संपन्नता इत्यादि को देखकर औऱ इन सब चीजों का सत्यापन करके यह साबित नहीं होता कि वह किसी भी प्रकार से पिछड़े हैं । इसलिए वह कागज का टुकड़ा दिखाकर जिससे साबित होता है कि वह किसी धर्म अथवा जाति विशेष में पैदा हुए हैं उन्हें आरक्षण मिल जाना चाहिए और मिलता भी है ।
अब देखते हैं दूसरा पक्ष जिसे आरक्षण नहीं मिलता है कारण यह है कि उनके पास वह कागज का टुकड़ा नहीं होता है जिसमें यह लिखा हो कि यह आरक्षण की श्रेणी में आने वाली जाति अथवा धर्म में पैदा हुए हैं इसलिए उन्हें आरक्षण नहीं मिलता है जबकि उनके पास इस टुकड़े के अलावा नीचे लिखी कुछ चीजें मौजूद होती हैं ।
( टैलेंट )ज्ञान, योग्यता, गरीबी, सामाजिक स्थिति कमजोर, आर्थिक स्थिति कमजोर, सामाजिक पिछड़ापन भी झेल रहे होते हैं, अच्छा घर मकान, शहर, सड़कें, इन सब से वंचित रहने के बाद भी अगर उनके अंदर योग्यता है । तो भी वह आरक्षण की श्रेणी में नहीं आ सकते यह भारत के विशाल लोकतंत्र के महान संविधान की मूल भावना नहीं है ।
यह भारतीय राजनीतिकदलों के नेताओं की गंदी सोच का परिणाम है वैसे भी आरक्षण एक निश्चित अवधि के लिए दिया गया था संविधान में इस बात का वर्णन है कि एक निश्चित अवधि के बाद आरक्षण को समाप्त कर दिया जाएगा किंतु आरक्षण समाप्त करने वाले दलों के विपक्ष में खड़े दलों का कहना यह है आरक्षण की आवश्यकता है लेकिन किन के लिए यह स्पष्ट नहीं करते ।
आरक्षण का दुरुपयोग उन लोगों के द्वारा किया जा रहा है जो ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन हैं इसमें नुकसान उन्हीं लोगों का हो रहा है जो यह महसूस करते हैं कि आरक्षण हमारे लिए है गरीब मजदूर बेसहारा आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए किसी भी जाति या समुदाय अथवा धर्म के हो, आज भी वैसे के वैसे हैं ।
आज वह चाहते भी हैं कि हमें आरक्षण का लाभ मिल जाए तो लाभले पाने वालों का प्रतिशत ना के बराबर है या यूं कहा जाए कि उन्हें आरक्षण कब कहां कैसे मिले इस बात की जानकारी ही नहीं है । जिनको आरक्षण की माकूल जानकारी है पहले से ही ऊंचे पदों पर हैं और मलाई के साथ और ज्यादा मलाई खाते जा रहे हैं यह विडंबना कब दूर होगी इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है ।
[स्रोत- कप्तान सिंह यादव]