हिन्दुस्तान और अल्पसंख्यकों की स्थिति

मैं आये दिन सुनता रहता हूॅं कि इस खान ने ये कर दिया और इस खान ने वो कर दिया. क्या ये बातें ठीक लगती है ? अब जबकि भारत में हिन्दू और मुस्लिमों बीच सीधी टक्कर होने जैसी बातें आयें दिन होती रहती है. कोई कहता है कि हमारे लिये इस्लाम, हिन्दुस्तान से पहले है। अगर दोनो में से मुझे किसी को चुनना पड़े तो मैं इस्लाम के लिये हिन्दुस्तानियों से भी लड़ाई कर लूंगा । कोई कहता है, मैं वंदेमातरम नहीं बोलूंगा । कोई कहता है, मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा, ये बातें कोई नासमझ या अन्जान लोगों ने नहीं कही । ये बाते नेताओं और मस्जिद के ईमामों द्वारा कही गई है।Muslim

यहां तक अपने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, जो जन्म से ही भारत में रहते हैं और सरकारी महकमों में उच्च पदों पर कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं। इसके बावजूद अपनी सोच को हिन्दुस्तानियत में नहीं बदल पाए। जबकि भारत का उपराष्ट्रपति के ऊपर भारत के नाम को विदेशो में बहुत भरोसे लायक और विश्वासी बनाने के लिये एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। क्योंकि कई विदेशी यात्राएं इस भरोसे से होती है कि ये हमारे देश की छवि उनके सामने अच्छी पेश करेंगे ।

इतने सालों तक सरकारी महकमों में काम करने के बावजूद ये खुद ही हिन्दुस्तानियत से कोई सरोकार नहीं रखते, जो आदमी खुद अपने देश के सिद्धांतों और आदर्शों से ही संतुष्ट नहीं है तो वो दूसरे लोगों या देशों को कैसे संतुष्ट कर सकता है। इन्होंने भी अपने अंतिम भाषण (विदाई भाषण) में वो बातें दोहरा दी जो एक आम मुस्लिम करता हैं । इनका कहना हैं कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम डरा हुआ है।

[ये भी पढ़ें : आरक्षण और भारत की दुर्दशा]

हामिद अंसारी जो एक सरकारी मुलाजिम है और इन्होंने इतने बड़े पद पर रहने के बावजूद भी ये बाते कह दी. हिन्दुस्तान के लिये इससे अधिक सोचनीय बिन्दु कोई और हो ही नहीं सकता। अब इसके बाद या तो मुस्लिमों को उच्च और अच्छे पदों पर बिठाना ही बंद कर देना चाहिये और अगर ऐसी कुर्सियों पर किसी प्रकार के आरक्षण का साया हो तो उसे तुरंत हटा देना चाहिये क्योंकि इनका दिमाग आप बदल ही नहीं सकते। जब इतने पढ़े लिखे लोगों का दिमाग और वो भी उच्च कोटि के सरकारी महकमों में इतने वर्षों तक काम करने के बाद भी आप नहीं बदल पाए । तो बिना पढ़े या कम पढ़े लिखे लोगों से तो आप सिर्फ जिहाद की ही उम्मीद कर सकते हैं.

जिहाद आपको हिन्दुस्तान के हर कोने में देखने को मिल जाएगा. चाहे केरल हो या कोई और जगह जहां आर.एस.एस प्रमुख मोहन भागवत जी को 15 अगस्त पर अपने देश का तिरंगा झण्डा फहराने से मना करने की बात हो। चाहे जम्मू-कश्मीर कि बात हो, जहां आतंकवादियों और पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ने के लिये अपनी जान पर खेलकर वहां के लोगों की सुरक्षा करने वाले सैनिकों पर पत्थर मारने की हो। चाहे बात दिल्ली की हो, जहां 6 मुस्लिम युवक मिलकर एक युवक की हत्या करने की बात हो ।

[ये भी पढ़ें : दलितो के अधिकारो की लड़ाई या फिर महज एक सियासी खेल]

उसके बावजूद ये बात कहना कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम डरा हुआ है तो ये बहुत ही शर्म की बात हैं । इन सब बातों को देखते हुए नहीं लगता कि वो हिन्दुस्तान मेें मुस्लिम डरा हुआ है । उसके बाद भी हम हिन्दुस्तानी इतने उदार प्रवृति के हैं, कि ये लोग हिन्दुस्तान में रहते हुए भी हिन्दुओं के देवी देवताओं के बारे में कुछ भी बोलते रहते हैं। फिल्मों में भी जितनी हो सकती है उनकी छवि खराब करने की कोशिश सदियों से करते आ रहे हैं। उन फिल्मों में अपना नाम हिन्दुओं के नाम पर रखते हैं, जिससे हिन्दुस्तानी दर्शकों को ये महसूस भी नहीं होने देते कि हिन्दुओं के देवी देवताओं के बारे में फिल्मों के माध्यम से गलत प्रचार कर रहे हैं ।

ये बात तो फिल्मी कहानियों की है, असल जिन्दगी में भी ये लोग सदियों से अपने नाम हिन्दूओं के नाम पर (दिलिप कुमार/युसुफ, मीना कुमारी/महजबीं,) रख कर हिन्दुस्तानियों को धोखा देते आए हैं । कहने को कहते हैं “ये तो फिल्मी नाम है” और हमारी भोली भाली जनता इनकी बातों में आ जाती कि ये नाम तो फिल्मी है। जिन फिल्मों में देवी देवताओं का अनादर होता है, मजाक बनाया जाता है, वोे फिल्में हिन्दुओं के कारण ही इतना अधिक पैसा कमाती है। इनकी (मुस्लिम हीरो की, जिसका फिल्मों में हिन्दू नाम होता है ) कीमत भी अन्य हीरो से ज्यादा हो जाती है, क्योंकि इनकी फिल्में ज्यादा कमाती है हिन्दुओं या हिन्दुस्तानियों के कारण ।

[ये भी पढ़ें : केरल यूथ कांग्रेस ने गाय काटी]

फिर भी ये लोग अपने दुश्मन पाकिस्तान का गुणगाान करते नहीं थकते । जबकि पाकिस्तान में भूख भरी पड़ी है, वहां काम करने का उतना पैसा भी नहीं मिलता जितना भारत में मिलता है। बहुत से हीरो हीरोइनों को भी भारतीय फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों को बुलाकर काम दिया जाता है और उनको शौहरत भी दिलाते हैं। क्योंकि पाकिस्तान की अपनी या उनकी फिल्मों की, विदेशों में कोई ईज्जत है ही नहीं। उन कलाकारों ने भारतीय फिल्मों में काम किया है इसलिये विदेशों में भी इनकी पहचान बन जाती है। जिसकी वजह से कई विदेशी कार्यक्रमों में भी इनको हिस्सेदार बनाते हैं और खूब पैसा दिलाते हैं।

कई कलाकारों ने तो बाकायदा ये माना भी है कि अगर भारतीय फिल्मों में हमें काम नहीं मिलता तो आज हमारी इतनी पहचान, ईज्जत, पैसा नहीं हो पाता जितना वहां काम करने पर मिला है । बावजूद इसके भारतीय कलाकार जो मुस्लिम हैं वो पाकिस्तान का गुणगाान करते रहते हैं । जब इन बातों का कोई हिन्दू संगठन विरोध करता है, तो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवि ये कहते हुए उनको गलत साबित करने की कोशिश करते हैं कि अब हिन्दुस्तान में अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं है।

[ये भी पढ़ें : बुर्के पर सियासत]

फिर बड़ी-बड़ी प्रेस काॅंफ्रेंस करेंगे, उन लोगों के बारे में गलत प्रचार प्रसार करेंगे जिससे लोगों को लगे कि ये जो संगठन है वो वाकई में कोई गलत काम कर रहा है. उनका साथ मीडिया भी बखूबी देता है, शायद कुछ पैसे लेकर या अपनी राष्ट्रविरोधी सोच के कारण या किसी पार्टी विशेष का पक्षधर होने के कारण या फिर किसी परिवार की गुलामी में अपना बहुत ज्यादा योगदान दर्शाने के लिए भी हो सकता है।

कारण कोई भी हो, मगर ये सब बातें राष्ट्र के विरूद्ध ही तो हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.