आज से 35 साल या शायद उससे भी और पहले जब हम बाहर जाते थे तो अस्पताल, रेल्वे स्टेशन, बस स्टैण्ड, रेल गाड़ी में, बस के अन्दर और शहर की दीवारों पर यही लिखा होता था, हम दो हमारे दो, छोटा परिवार सुखी परिवार या बच्चे दो ही अच्छे तब हमें समझ में नहीं आता था कि इसका क्या मतलब होता है लेकिन उन बातों का मतलब अब समझ में आने लगा है, कि ये तो जनसंख्या वृद्धि को नियत्रंण करने के कुछ हल्के से उपाय है ताकि लोग अपने आप ही समझ कर जनसंख्या को नियत्रंण में कर लेवें जिससे सरकार को सख्ती नहीं करनी पड़ेगी.
लेकिन जनता को कुछ खास समझ में नहीं आया और काम वैसे ही चलता रहा मतलब जनसंख्या की वुद्धि नहीं रूकी तो सरकार ने भी हल्का बल प्रयोग करने की सोची और जिस किसी महिला को बच्चा होता उसके बाद उसका आॅपरेशन कर दिया जाता ये समझकर की जब आॅपरेशन कर देंगे तो बच्चे होंगे ही नहीं इससे कुछ फर्क पड़ा, लेकिन जो टारगेट था वो अभी बहुत दूर था और इस छोटे से काम से वो पूरा होते हुए नजर नहीं आ रहा था अब उन्हें एक नया उपाय सूझा कि क्यूं नहीं पुरूषों को ही आॅपरेशन के लिये तैयार किया जाए और उनको कुछ ईनाम भी दे दिया जाए जिस से गरीब जनता उन रूपयों के लालच में आकर आॅपरेशन करवा लेंगे ।
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इसमें 5, 10 प्रतिशत का फर्क पड़ा फिर भी जनसंख्या वृद्धि नहीं रूकी अब सरकार को एक नया रास्ता मिला, उसमें जबरदस्ती आॅपरेशन का प्रावधान था कि पुरूषों को जबरदस्ती अस्पताल में लाकर उनका आॅपरेशन कर दिया जाए हाॅं ईनाम उनको भी दिया जा रहा था फर्क इतना ही था कि अब पुरूषों को पकड़ कर लाना पड़ता था, अपने आप नहीं आ रहे थे ।
उसका फर्क जिन्दगी पर अब पड़ने लगा है बच्चे प्राकृतिक रिश्तों की अहमियत को ही भूल गए हैं या यूं कह सकते हेैं कि अब उन्हें मामा, मासी, बुआ, चाचा, चाची, ताउ या ताई के असली सम्बोधन का मतलब ही मालूम नहीं है क्योंकि जब बच्चे दो ही अच्छे होंगे तो,
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यदि दो लड़के होंगे तो उनको अपनी बहन का प्यार क्या होता है कभी पता नहीं चलेगा और बच्चों की शादी के बाद उनके जब बच्चे होंगे तो शाले बहनोई के रिश्ते की मिठास बुआ और फूंफा का घर में क्या रौब है और उसको मम्मी कैसे मैनेज करती है कभी पता नहीं चलेगा.
यदि दो लड़कियाँ होंगी तो उन्हें भाई की अहमीयत का कभी पता नहीं चलेगा और जब इनकी शादी होगी तो मामा, मामी या उनके बच्चे जिन्हें इस जमाने में कजिन कह कर पिछा छुड़ा लेते हैं उनकी अहमियत का क्या उन्हें कभी पता चल पायेगा.
यदि एक लड़का एक लड़की, हाॅं इनके लिये कुछ हद तक ठीक ठाक है कम से कम बुआ और मामा का मतलब तो पता होगा हाॅं चाचा, चाची, और मौसा, मौसी का पता नहीं चलेगा जब इनकी अपनी शादी होकर इनके बच्चे होंगे तब ।
ये सब एक साजिश के तहत हो रहा था क्योंकि भारत की सांस्कृतिक विरासत को खत्म करने की साजिश पिछले कई सालों से चल रही थी और इसमें कुछ हद तक कामयाबी भी मिली है, अब सगे मामा, चाचा हो या कोई अंजान व्यक्ति सब को अंकल शब्द में लपेट लिया गया ।
पहले जो बीज बोये हए थे उसके फल अब मिल रहे हैं, आज के बच्चों में बुजुर्गों के प्रति आदर सम्मान की कोई समझ नहीं है, दूसरों का छोड़ो अपने घर के बड़ों का सम्मान भी अच्छे से नहीं करते हैं, कभी कोई आया हुआ हो और उन्हें बोल ही दे कि ऐसा करो सम्मान के लिये, तो सीधा जवाब मिल जाता है, कि क्या पापा आप भी दकियानुषि विचारों वाले हो, ये सब दिखावे की क्या जरूरत, सम्मान दिल से किया जाता है । और मैं अपने दिल से सब का सम्मान करता हूॅं, और अब जो नई पीढ़ी बड़ी होगी उनसे शायद ये शब्द भी सुनने को नहीं मिले ।