आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण काल के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनकी खास लेखन कला उन्हें औंरो से अलग पहचान दिलाती हैं। देवी प्रसाद के घर जन्मे जयशंकर प्रसाद मात्र नौ वर्ष की अवस्था से ही साहित्यिक रचना करने लगे थे। आगे चलकर उन्होंने एक सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार के रूप मेें साहित्य की सेवा की।
जब वे बहुत कम उम्र थे तभी उनके माता एवं बड़े भाई की मृत्यु हो गई। जिससे वे पूरी तरह टूट चुके थे लेकिन बिना विचलित हुए जयशंकर प्रसाद ने एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक कहानियाँ, कविता, नाटक, उपन्यास की रचना कर डाली। दानशील, एवं शिव उपासक परिवार में जन्मे जयशंकर प्रसाद अपने साहित्यिक जीवन-काल के दौरान यादगार 72 कहानियाँ, 13 नाटक, 3 उपन्यास की रचना कर देश की साहित्यिक विरासत को समृद्ध बनाने का महान कार्य किया।
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उनकी प्रमुख रचनाओं में कामायनी, उर्वशी, कंकाल, इंद्रजाल, आकाशदीप, छाया इत्यादि का विशेष स्थान हैं जिसे आज भी साहित्यप्रेमी बड़ी रोचकता के साथ अध्ययन करते हैं। जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में भावात्मक शैली, चित्रात्मक शैली, अलंकारिक शैली, संवाद शैली, वर्णात्मक शैली का बेजोड़ छाप देखने को मिलता हैं।
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अनेक मन्नतों के बाद देवी प्रसाद को जयशंकर प्रसाद के रूप मेें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। बचपन में उनके माता-पिता एवं परिवार के सदस्य उन्हें प्यार से झारखंडी कहकर पुकारा करते थे क्योंकि उनके माता-पिता का मानना था कि झारखंड के बाबा भोले शंकर की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई हैं। झारखंडी से सुप्रसिद्ध साहित्यकार तक का सफर तय करने वाले सरस्वती के अग्रदूत जयशंकर प्रसाद सदैव साहित्य प्रेमियों के दिलों में रहेंगे।
[स्रोत- संजय कुमार]














































