प्रस्तुत पक्तियों में कवियत्री ज्ञानी जनो के गुणों का वर्णन कर रही है। वह चाहतीं हैं ये दुनियाँ जानें, ज्ञानी वो नहीं जो घमंड करते हैं ज्ञानी वो है जो खुदकी मंज़िल पाकर दूसरे को भी राह दिखाये । क्यूंकि घमंड की राह में इंसान अपने साथ -साथ दूसरों का भी बुरा कर देता हैं। वह कहती है ज्ञान की सही राह में ज्ञानी जन को प्रथ्वी के हर जीव से प्यार हो जाता हैं, फिर वह ना तो किसी का बुरा सोचता और नही वो किसी का बुरा करता है।
कवियत्री कहती हैं हर इंसान ज्ञान को इस दुनियाँ में रह कर भी जान सकता हैं,बस इंसान में ज्ञान को खुद समझ ने का जज़्बा होना चाहिये , वरना कोई गुरु भी अपने शिष्य को ज़बरदस्ती ज्ञान नही सिखा सकता, क्यूंकि हर इंसान अलग हैं सबकी अपनी अलग सोच हैं तो ज्ञान समझने के लिए हमे हमारी सोच को बदलना होगा और ज्ञान के रास्ते पर चलने के लिए हमें खुदको तैयार करना होगा, क्यूंकि सबको ये लगता हैं की हम सही हैं लेकिन ऐसा नहीं है क्यूंकि अगर ईश्वर का अंश हम सब के अंदर हैं तो शैतान भी हमसे परे नही. खुदको बदलने का मतलब है अपने अंदर की बुराई पर हर रोज़ लगाम लगाने की कोशिश करो।
कपड़े चाहें हम कुछ भी पहने ज्ञानी जन मन से साफ़ होते हैं,तो कपड़ो को देख कर किसी के लिए गलत धारणा नही बनानी चाहिये । कोई धर्म लड़ना नही सिखाता ये तो लोगो की समझ में गलती हैं, पर ज्ञानी लोग ये बात जानते हैं। ज्ञानी जन अपने दुखो के रहते दूसरों का भी दुख समझते हैं, इस दुनियाँ में ऐसा कोई नहीं जिसके जीवन में दुख ना हो ज्ञानी जन ये बात समझते हैं और अपने को संभाल कर वो दूसरों को भी संभालते हैं।
सच्चे ज्ञान की नईया में,
जिस किसी ने भी डुबकी लगाई।
खुदकी मंज़िल पाकर,
उसने दूसरों को भी,राह दिखाई।
ज्ञान पाकर भी जो,
घमंड के रास्ते पर निकल जाते है।
दूसरों को कर भ्रमित,
वो एक दिन अपनी नज़रों में ही गिर जाते हैं।
ज्ञान की दुनियाँ में,
हर जीव लगता है अपना।
सबको अपनी मंज़िल तक पहुंचाने का देखें,
ज्ञानी दिन रात बस एक ये ही सपना।
ज्ञान को पाने का जज़्बा,
दुनियाँ में रहकर भी आ सकता हैं।
अपने -अपने अनुभव अनुसार,
सबको बस अपना धर्म ही ठीक लगता हैं।
ज्ञान कहता हैं,
हम सब एक हैं।
समझें बस वहीं,
जिसके इरादे नेक हैं।
सच्चा ज्ञानी अपनी मेहनत का खाता हैं।
अपने दुखों के रहते ,
वो दूसरो के दुखो में भी शामिल हो जाता हैं।
इस सच का पता ,हमें समय-समय पर समझमें आता हैं।
जब ऐसे व्यक्ति संग,
हमारा उठना-बैठना हो जाता हैं।
कपड़े भले ही हो मैले,
ज्ञानी मन से सुन्दर होता हैं।
अपने को हर वक़्त संभाल,
वो दूसरों के लिए भी रोता हैं।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com.