महिलाओं के साथ होने वाले शोषण और उत्पीड़न को रोकने के लिए सरकार ने एक अहम फैसला लिया है, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जानकारी देते हुए कहा है कि सरकार अब विवाह का पंजीकरण अनिवार्य करने जा रही है, जिससे महिलाएं धोखाधड़ी के मामलों से बच सकेंगे।
2006 में उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी धर्म के लोगों को विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया था। सरकार के इस फैसले पर दारुल उलूम और अन्य देवबंदी उलेमाओं में प्रतिक्रिया व्यक्त कर कहा था कि सरकार के विवाह पंजीकरण के फैसले से हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन ऐसा ना करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का आदेश उत्पीडनात्मक है। उनका तर्क है कि शादी का पंजीकरण कराने का फरमान महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से उचित कदम है, परंतु इसे अनिवार्य किया जाना उत्पीड़न से कम नहीं है।
विधि आयोग के अनुसार शादी का पंजीकरण अनिवार्य किया जाना आवश्यक है
विधि आयोग का कहना है कि भारत में महिलाएं शादी के बाद भी सुरक्षित नहीं है, मुस्लिम धर्म में तो विवाह के बंधन को तीन तलाक के माध्यम से ही खत्म कर दिया जाता है, जो कि महिलाओं के हित के खिलाफ है। विवाह पंजीकरण से शादी में धोखा धड़ी के मामलों को रोकने में मदद मिलेगी और महिलाएं सुरक्षित रहेंगी। इस के लिए विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं है, केवल जन्म मृत्यु पंजीयन एक्ट 1969 में मामूली संशोधन किए जाने की आवश्यकता है।
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शादी के पंजीकरण के लिए आधार कार्ड लिंक करना आवश्यक नहीं
लॉ कमीशन ने शादियों के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में आधार को लिंक करने की बात कही थी परंतु आधार लिंक करने की प्रक्रिया को कुछ समय के लिए अभी डाल दिया गया है, अतः अब शादी के पंजीकरण के लिए आधार कार्ड लिंक करना आवश्यक नहीं है।
विवाह पंजीकरण के फायदे
विवाह पंजीकरण कराने के अनेक फायदे हैं।
1-: सर्वप्रथम शादी के बाद होने वाली धोखाधड़ी से छुटकारा मिलेगा।
2-: पारिवारिक मुकदमा के निपटारे में मदद मिलेगी।
3-: रजिस्ट्रेशन के दौरान दूल्हा व दुल्हन की उम्र दर्ज कराने से बाल विवाह पर अंकुश लगेगा।
4-: महिलाएं विवाह के पश्चात अधिक सुरक्षित हो सकेंगी।