न्यायमूर्ति महादेव गोविंद राणाडे का जीवन दर्शन आज भी संपूर्ण मानवजाति के लिए बेहद प्रासंगिक हैं।
महाराष्ट्र का सुकरात के नाम से सुप्रसिद्ध महादेव गोविंद राणाडे का जन्म 18 जनवरी 1842 ई. को नासिक महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे निफाड़ में हुआ। वे भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान न्यायाधीश थे एवं उनका संपूर्ण जीवन समाज में व्याप्त अंधविश्वास, हानिकारक रूढ़िवादी विचारों को दूर करने में बीता।कानून की अच्छी समझ रखने वाले राणाडे स्वदेशी सिद्धांत के बहुत बड़े समर्थक थे और उनका स्पष्ट मानना था कि स्वदेशी सिद्धांत से देश मजबूत होता हैं। अतः प्रत्येक भारतीय में स्वदेशी की भावना कूट-कूट कर भरी होनी चाहिए। एक स्त्री को उसके पति के मृत्यु के बाद जिस प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हैं उसका ख्याल कर विधवा पुनर्विवाह की वकालत उन्होंने की जबकि तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था में अधिकांश लोग इसके विरोधी थें। विधवा पुनर्विवाह के संदर्भ में जो उनके विचार थे। उसकी झलक राणाडे द्वारा लिखित विधवा पुनर्विवाह शीर्षक पुस्तक में देखने को मिलता हैं।
उनकी कुछ अन्य लिखित चर्चित पुस्तकों के शीर्षक निम्न हैं, मालगुजारी कानून, राजा राममोहन राय आदि ।स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महादेव गोविंद राणाडे का विशेष योगदान रहा। सदैव नारी उत्थान की बात करने वाले राणाडे बाल-विवाह के कट्टर विरोधी एवं विधवा-विवाह बहुत बड़े समर्थक थे।
राष्ट्रवाद के संदर्भ में उनके महान विचार थें। उनका कहना था कि प्रत्येक भारतवासी को यह समझना चाहिए कि पहले मैं भारतीय हूं और बाद में हिन्दू, ईसाई, पारसी, मुस्लिम। राष्ट्रवादी सिद्धांत के संदर्भ में ऐसे महान सोच रखने वाले सच्चे राष्ट्रवादी को उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर उनकी महानता को शत-शत नमन!
[स्रोत- संजय कुमार]