15 सितंबर को पूरा देश इंजीनियर दिवस के रूप में मनाता है और इंजीनियर को हम हिंदी में अभियन्ता कहते हैं. मगर 15 सितंबर के दिन ऐसा क्या हुआ था जो पूरा देश इसे इंजीनियर दिवस के रूप में मनाता है तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में जिनकी वजह से हम 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस के रुप में मनाते हैं.
दोस्तों कोई यूं ही नहीं इंजीनियर बन जाता है हां तो यह बात बिल्कुल सत्य है. उसके लिए हमें बहुत से त्याग करने पड़ते हैं एक आगामी सोच रखनी पड़ती है और बदलाव की इच्छा रखनी होती है. आज हम अपने घरों में और आसपास लगभग सभी व्यवस्थाएं, सामान, उपकरण आदि देखते हैं जो केवल एक इंजीनियर की ही देन है. .
अगर उन अभियंताओं ने प्रयास ना किए होते तो आज हम अपने घरों में टीवी, फ्रिज, बल्ब इत्यादि नहीं देख सकते थे और बहुत से ऐसे उपकरण है जो हमारे काम को बहुत ही आसान बनाते है ये सब इंजीनियर्स की ही दें हैं और दोस्तों किसी ने सच ही कहा है कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” अगर हमें रात में रोशनी की जरूरत ना होती तो बल्ब ने बनाया गया होता, ठंडे पानी की जरूरत ना होती तो फ्रीज ने बनाया गया होता.
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दोस्तों आज हम एक ऐसे ही महान इंजीनियर के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी वजह से हम 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस मनाते हैं. भारत रत्न से सम्मानित मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या ही वह शक्स है जिनकी वजह से हम आज तक इंजीनियर दिवस मनाते हैं.
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितंबर 1860 को मैसूर के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक के एक तेलुगु परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री था जो कि एक संस्कृत के विद्वान थे और उनकी माता का नाम वेंकाचम्मा था. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई अपने जन्म स्थान पर ही की और आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में भेज दिया गया. मगर आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनको ट्यूशन करना पड़ा मगर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या ने हार नहीं मानी और 1881 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया. जिसकी वजह से मैसूर सरकार उनकी मदद के लिए आगे आयी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उनहे पुणे के साइंस कॉलेज में दाखिला दिला दिया.
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सरकार के इस फैसले को उन्होंने तब सच साबित कर दिखाया जब 1883 में उन्होंने एलसीई व एफसीई की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया. जिसके चलते महाराष्ट्र सरकार ने उनको नासिक में सहायक इंजीनियर का पद पर नियुक्त कर दिया. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या अपने कार्य को लेकर इतने उत्सुक और सजग रहते थे कि उन्होंने अपने जीवन काल में कई अभूतपूर्व योगदान दिए.
उनके प्रयास से ही कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियां संभव हो पाई. 1955 में उनकी अभूतपूर्व उपलब्धियों और योगदानों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर उनके सम्मान को और बढ़ाया. 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया।
मगर संपूर्ण भारत उनके इन अभूतपूर्व योगदानों का सदैव ऋणी रहेगा और फिरभी न्यूज़ भी उनके इन अभूतपूर्व योगदानों के लिए तहे दिल से आभार व्यक्त करता है.















































