भारत सरकार की तरफ से हर साल महिलाओं की सुरक्षा और गोपनीयता की जरूरतों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार की तरफ से उठाए सुरक्षा कदम कारगर साबित नहीं हो पा रहे है । जिसकी वजह से आए दिन महिला कर्मचारियों को हादसे का शिकार होना पड़ रहा है। कभी कंपनी मे छेड़छाड़ तो कभी रात की नौकरी में उनके साथ हो रहे सुरक्षा के समझौतों के चलते उन्हें या तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है या फिर कंपनीज के माहौल में आने वाले शोषण का सामना करना पड़ता है।
दिसंबर 13, 2005 में हुई एक बीपीओ कर्मचारी प्रतिभा की हत्या के चलते पूरी बीपीओ इंडस्ट्री को निशाने पर ला खड़ा कर दिया था । इस घटना के बाद भी विशेष रूप से आईटी और बीपीओ कंपनियों में अच्छे सुरक्षा उपायों के लिए कई परिवर्तन करने के दावों की पोल खोल दी है। जिसमें आए दिन बीपीओ कंपनीज मे महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लापरवाही दिखती है। जिसका उदाहरण हाल ही की कुछ घटनओ के देखने से पता लगता है।
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मसलन, चाहे वो साल के बीच मे हो या शुरुआत घटनाए कम नहीं हुई । जिसका उदाहरण आईडीसी टेक्नोलॉजीज में महिला कर्मचारी के जरीए अपनी कंपनी में महिला सुरक्षा पॉलिसी में लापरवाही बताई, वही साल की शुरुआत में इनफोसिस, टेक महिंद्रा की महिला कर्मचारी की मौत की वजह भी कंपनी की महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनहीनता के चलते हुई ।
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जिससे निश्चित हो गया कि महिला कर्मचारियों की सुरक्षा कंपनियों के लिए महज दिखावा भर है की कुछ कंपनियां रात में काम कर रही महिला कर्मचारियों को टैक्सी पिक-अप और ड्रॉप सुविधा ना देकर पैसे बचाने की कोशिश में लगी हुई है और यदि आगे भी इसी तरह से बी.पी.ओ कंपनीज महिलाओं की सुरक्षा को धत्ता करती रहेगी तो मोदी सरकार के उन वादों का क्या अंजाम होगा जो वादे वह हर चुनाव में देश की हर जननी हर लड़की से उनकी सुरक्षा को लेकर करते है।
बता दे कि 2016 के बाद से राज्य सरकार ने महिलाओं को सभी क्षेत्रों में रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति पर प्रतिबंध हटा दिया है। अधिनियम 1948 में संशोधन किया गया है ताकि महिलाओं की सुरक्षा और गोपनीयता की जरूरतों को सुनिश्चित करने के लिए पिकअप और ड्रॉप में सुविधा शामिल है।