22 फऱवरी को अमेरिका में एक ऐसी घटना हुई जिसका असर अमेरिका से ज्यादा भारत पर पड़ा, राष्ट्रवाद के नाम पर 22 इंजीनियर श्रीनिवास को अपने देश से निकल जाने की धमकी देकर यूएस नेवी से रिटायर्ड एडम पुरिन्टन ने उनको गोली मार दी, क्या इसको हम हेट क्राइम का नाम नहीं दे सकते, हेट क्राइम यानि की नफरत की आग में किसी भी हत्या करने की आजादी नस्ली हिंसा के नाम पर एडम पुरिंटन नफरत करने वालों के उग्र राष्ट्रवाद का नया नायक हो सकता है।
लेकिन राष्ट्रवाद के नाम पर लड़ने वालों के लिए एक नई सोच पर विचार करने का मौका है यकिन मानिए इस पर इसपर बहस हो सकती है लेकिन श्रीनिवास की पत्नी सुनन्या दुमाला ने दुनिया के सभी राष्ट्रवाद वक्ता से सवाल पूछा है, ये सवाल नहीं राष्ट्रवाद के नाम पर अपनों से इंसानियत से लड़ाई करने वालों के मुंह पर थप्पड़ है अपने पोस्ट में यही कुछ लिखा डोनल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी राजनीति काफी एक जैसी है। अमेरिका फर्स्ट के नारे को चुनने वाले देश में रहने वाले श्रीनिवास इंडिया फर्स्ट वाली राजनीति के दीवाने थे। नरेंद्र मोदी की राजनीति उन्हें पसंद थी। सुषमा स्वराज की तारीफ करता थे। लेकिन कयामत देखिए। उन्हें राष्ट्रवाद के उसी विचार ने मार डाला जिसकी वह पूजा करता था।
राष्ट्रवाद के नाम पर इंसानियत से नजरें चुरा रही नौजवानों की नस्लें समझने को तैयार नहीं कि मुल्क रातों रात नहीं बदला करते। और न ही नेता रातों रात बनते हैं। वो समझने को तैयार नहीं कि एक रात में बदलाव की ज़िद बरसों की नींद हराम कर देती है। श्रीनिवास को हमेशा इस बात की परवाह रहती थी कि उनके आसपास क्या हो रहा है उन्हें भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बहुत गर्व था वो मानते थे कि आखिरकार भारत को ऐसा नेता मिल गया है।
जो भारत को चमका सकता है श्रीनिवास की पत्नी ने फेसबुक पोस्ट के जरिये दुनिया के सामने एक ऐसा सवाल रखा है जिसका जवाब किसी सियासतदां के पास नहीं है आखिर में वो बात, जो इस समय हर प्रवासी के दिमाग में है… क्या हम यहां से ताल्लुक रखते हैं? क्या ये वही देश है, जिसका हमने सपना देखा था ? और क्या ये अपने परिवार और बच्चों को पालने के लिए अब भी सुरक्षित है ?
ये बिल्कुल वही सवाल है जो बरसों से भारत के मुसलमान पूछ रहे हैं दलित पूछ रहे हैं आदिवासी पूछ रहे हैंकिसान पूछ रहे हैं, मज़दूर पूछ रहे हैं। सुनन्या ने लिखा है राष्ट्रवाद की बलिवेदी पर कत्ल करते वक्त श्रीनिवास की अच्छाइयां नहीं देखीं गईं हम यहां अपने सपने पूरे करने आए थे… वो हमेशा मुझसे कहते थे कि अगर हम अच्छा सोचते और करते हैं, तो हमारे साथ भी अच्छा होगा और हम सुरक्षित रहेंगे. वो मुझे कसकर गले लगाते थे और ये भरोसा दिलाते थे…अच्छा ही होगा अगर श्रीनिवास की हत्या से खड़े हुए सवाल भारत के चरम राष्ट्रवादियों की आंखों में भी कुछ शर्म पैदा करे। उनकी चेतना को झकझोरे और बदलने का साहस दे। लेकिन क्या ऐसा होगा?
श्रीनिवास को वैसे ही गोली मारी गई जैसे भारत में गोविंद पानसरे को मारी गई। दाभोलकर को मारी गई। कलबुर्गी को मारी गई। जिस राष्ट्रवाद ने सुनन्या के दिल में खौफ भर दिया ठीक वही खौफ भारत ने गुरमेहर के दिल में भी तो भरा है। उन्हें तर्कों से नफरत है, सबूतों से नफरत है।
भले ही अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कनसास हमले की और उसके जैसे हमले की निंदा की लेकिन सवाल ये है की राष्ट्रवाद के नाम पर हम यहां अपनों से कब तक लड़ते रहेंगे, राष्ट्रवाद के नाम पर लोग एक दूसरे को कब तक मारते रहेंगे यहीं कनसास हमले में मारे गए श्रीनिवास के पत्नी ने पूछा है।
















































