आज दिवस है गणेश चतुर्थी का, श्री गणेश का अवतरण दिवस | अब उनका अवतरण कब माना जाए जब वो माता पार्वती द्वारा स्थापित किये गए थे या फिर पिता शिव द्वारा पुनर्जीवित किये गए थे | अब श्री गणेश के पिता देवाधिदेव ने उन्हें यूँ ही नहीं गणाध्यक्ष बना दिया उन्होंने क्या संशोधन किया उसका ज्ञान एक छोटे से वृतांत से समझते है.
भगवान शंकर के चरित्र में सिर काटने का प्रसंग बार-बार आता है । ब्रह्मा के पाँच सिर थे, उनका एक सिर काट दिया था । शंकरजी के श्वसुर दक्ष का सिर भी भगवान शंकर की ही प्रेरणा से कट गया और अपने पुत्र गौरीसुत गणेश का सिर भी स्वयं उन्होंने काट लिया था । इसका अभिप्राय यह है कि शंकरजी तो हैं विश्वास के देवता और यह सिर ही है, जो विश्वास के विरूद्ध बार-बार विद्रोह करता है इसलिए वे सिर को ही पहले काटते हैं ।
सिर का क्या मतलब ? सिर बुद्धि का स्थान है । अब प्रश्न उठता है कि क्या विश्वास को बुद्धि की आवश्यकता नहीं है ? बुद्धि में दो प्रकार की वृत्ति है, संशय की वृत्ति और विवेक की वृत्ति । जहाँ पर संशय की वृत्ति है, वहाँ पर वे सिर काट देते हैं और विवेक वृत्ति का एक नया शिर जोड़ देते हैं ।
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अब सिर कटने पर पार्वतीजी बड़ी दुखी हुईं, रोने लगीं। हाय ! आपने मेरे पुत्र का सिर काट दिया ? शंकरजी मुस्कराते बोले – पार्वती ! तुमने भूल की, बालक का निर्माण तो दो के द्वारा होता है, तुमने अकेले ही इस बालक का निर्माण कर लिया । इसका अभिप्राय यह है कि जिस गणेश का निर्माण केवल श्रद्धा के द्वारा हुआ, उसमें विश्वास का अभाव होगा । श्रद्धा बुद्धितत्त्व है और विश्वास ह्रदयतत्त्व. दोनों का सामंजस्य होना ही चाहिए । तुमने अकेले ही बालक का निर्माण कर दिया ….. अच्छा ! कोई बात नहीं है, अब नया सिर जोड़ देते हैं ।
इस तरह गणेशजी का गले तक का भाग पार्वतीजी की सृष्टि है और सिर भगवान शंकरजी का दिया हुआ है । ये ही श्री गजानन गणेशजी, जिनकी हम पूजा करते हैं, जिनका निर्माण पार्वतीजी और शंकरजी के द्वारा हुआ । जो श्रद्धा और विश्वास का समन्वय रूप है । गणो में शिरोमणि उनके अधिपति गणाधीश जिनमे केवल और केवल भक्ति बह रही है – भक्ति का पूर्णावतार विघ्नहर्ता श्रीगणेश
ये मात्र एक कथा नहीं एक दर्शन है जो हिन्दू धर्म की उच्चता को, उसके अध्यात्म को सर्वमान्य रूप में परिभाषित करता है| कथाये कहानियाँ सीधे कहो तो मनोरंजक और सूत्र रूप में सुनो तो जीवन का सार दिखाई पड़ता है. बुद्धि के सागर, हेरम्ब, क्षेमंकरी प्रभु शुभगुणकानन गणपति आप सब पर कृपा करें |
[स्रोत: पं. नीरज शुक्ला]