शादियों का इमोशनल अत्याचार

किशनगंज, दिघलबैंक:- आजकल पूरे इलाके में शादियो का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। यहाँ की फिजाओं में DJ, बैंड पार्टी की धुने, व लज़ीज़ व्यंजन की खुश्बू साफ़तौर पर महसूस किया जा रहा है। लज़ीज़ व्यंजन की बात की जाए तो सचमुच काफी आनंददायक लगता है।

शादियों का इमोशनल अत्याचार

लेकिन इन लज़ीज़ खानों की खुश्बू तब कम हो जाती हैं जब नज़रें पॉकेट की तरफ जाती हैं। खैर ये बाद की बातें हैं। जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, चिंताजनक है। आजकल के बच्चे कब नौजवान हो जाते हैं, पता ही नही चलता है। शायद खाद-पानी का असर है।

जब उनकी शादी का कार्ड हमारे हाथों में आता है तो अजीब सा मुँह बनाकर कहते हैं:- इतना जल्दी? अब हमें कौन समझाए की 4G की स्पीड, और बच्चों के लंबे होने की स्पीड में शक नही किया करते।शादियाना माहौल शुरू होते ही हमे अपनी पॉकेट की तरफ बार बार देखना पड़ जाता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी याददाश्त इस समय थोड़ी कमजोर हो जाती है, अक्सर प्रीतिभोज की तारीख ही भूल जाते हैं।

कुछ लोग तो इस समय तड़ीपार ही होना बेहतर समझते हैं। पतियों की शामत तो तब आती है, जब ससुराल में किसी की शादी हो। पत्नी की आंखे तब हमेशा पति के तरफ ही रहती है। जैसे कह रही हो कब चलना है। कसम से पति बेचारा उस समय खून की आंसू रोता है। युद्ध की स्थिति तो तब आती है, जब साली साहिबा कि शादी हो। पत्नी का दबाव और भी बढ़ जाता है। फ़रमाइश होती है:-

सोच रही हूं छोटी को फ्रिज ही दान में दूँ। जैसे फ्रिज किलो के भाव मिलते हों। पति बेचारा बेहोश होते होते बचता है। सोचता है कि विद्रोह कर दूँ, लेकिन बेचारा खामोश रहता है। गांव की शादी की बात की जाए तो:- हम पूर्णतः संकल्पित रहते हैं कि जाना ही है।

उस समय हमारी मैनेज करने क्षमता बढ़ जाती है। सबसे अधिक मौज तो बच्चे के होते हैं,, निः शुल्क सेवा जो मिलती है। इस समय रुपया का महत्व हमे खासकर समझ मे आता है। जैसे वित्तमंत्रालय मिला हो। कुछ का मन तो तब क्रोधित हो जाता है, जब थाली का एक खास कोना थोड़ा खाली रह जाता है।

ऐसे व्यक्ति पॉकेट को चाप कर ही काम निकालते हैं। हालांकि कुछ उदारवादी होते हैं। फर्क नही पड़ता है। इन माहौलों मे रंगीन तबियत के लोग मौज उड़ाते हैं। उनकी तबियत में अचानक तब्दीली आ जाती है। ऐसे लोग अक्सर शाम को दिखाई देते हैं। चेहरे पर मुस्कान, हाथों में रुमाल लिए महोदय सभी का अभिवादन करते नही चूकते।

उस वक्त अगर डीजे धुन बज जाए तो ये रंगीन मिजाजी लोग अपने आपको किसी रॉकस्टार से कम नही समझते। बातें तो और भी हैं। फिर कभी,,,

[स्रोत- निर्मल कुमार]

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