देश का आम आदमी पिछली सदी में भी रोजी रोटी फिक्र में घुलता था, आज भी घुलता है । देश के प्रति प्रेम था, आज भी है । मगर उसे पढ़ने लिखने की फुरसत ना थी । द्रोहियों को देख कुढ़ता था मगर मंच ना था । आवाज ना थी । मीडिया हाउस माफिया थे जो लेफ्ट या सरकारी इशारे पर मनचाहे तरीके से देश का माहौल बनाते थे। पिछली सदी में सूचना क्रांति ना थी । इंटरनेट और केबल टेलीविजन इस कदर व्यापक ना था । सोशल मीडिया की धमक ना थी।
नतीजतन मीडिया की हैसियत बस सरकारी प्रोपेगेंडा तक ही सीमित थी । कई लोग पढ़ भी ना सकते थे वो औरों पर निर्भर थे । इतिहास और राजनीति विज्ञान के मामले में युवाओं का ज्ञान सिर्फ टेक्स्टबुक तक सीमित था जिस पर तथाकथित बुद्धिजीवियों का कब्जा था । इतिहास मुगलों और टीपू सुलतान जैसे कातिलों की गौरव गाथा से भरा होता । इस्लाम की शांति सद्भावना महिमा गाई होती । आम आदमी को भेड़ समझा जाता था।
सूचना क्रांति ने सब बदल दिया । आम भारतीय को इराक औऱ सीरिया में फैली शांति से इस्लाम की हकीकत मालूम हो रही है । उसे केरल की केरल से कश्मीर की जिहाद मालूम हो रही है । कांग्रेस का तुष्टिकरण का इतिहास मालूम हो रहा है । उसे गुस्सा आ रहा है । उसे राजनैतिक और शैक्षिक गलियारों में घूमते देशद्रोहियों की सारी हरकतों का इल्म हो रहा है । वो ऑटो चला सुस्ता रहा होता है न्यूज चनलों पर देश के टुकड़े करने के नारे भी सुनता है । चौबीस में से 18 घण्टे पढ़ने वाला छात्र भी यूट्यूब पर नक्सलियों के हाथ मरे जवानों को देख रो देता है।
इन आम भारतीयों की कोई आयतित विचारधारा ना है । देश ही इनका विचार है । कांग्रेसी गिरोह और JNU के झोलाछाप टाइप लोगों की लड़ाई आज किसी पोलटिकल पार्टी से ना है, आम मजदूर, किसान, छात्र, नौकरीपेशा और बेरोजगार से है । देश में बाहुबली और बुद्धिजीवी लोगों की एक नई ही सेना खड़ी होती जा रही है जो करप्शन, बेरोजगारी भुखमरी बरदाश्त कर लेंगे पर राष्ट्रद्रोह नहीं ।
तुम चोर हो डाकू हो तो जनता छोड़ भी देगी, मगर देशद्रोहियों को ना बख्शेगी। राजनीतिक पार्टियां और वैचारिक धड़े जितना जल्दी समझेंगे उतना बेहतर होगा, अन्यथा जल्दी ही लुप्तप्राय स्पीशीज में गिनती होने लगेगी ।