आप सभी जानते हैं कि तीन या चार लोगों से लेकर पचास लोगों के एक समुह को परिवार नाम से परिभाषित किया गया है। राजस्थान में ऐसे परिवार बहुत ही अधिक संख्या में मिलेंगे जहां आज भी अपने से बड़े लोगों की बातें ध्यान से सुनते और वैसा ही करते हैं । यहां अपनापन बहुत ज्यादा हैं मतलब दिल से रिश्ते बहुत अधिक स्वीकार किये जाते हैं ।हां आजकल कुछ लोग अधिक पढ़ने लिखने की वजह से कहीं-कहीं किसी बात में दिखावा भी महसूस होने लग गया है, लेकिन फिर भी कोई खुल कर दिखावा करने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि हर आदमी या रिश्तेदार एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं इस वजह से दिखावटी रिश्ते बहुत ही सीमित दायरे में होते हैं और वो भी हर किसी के साथ ऐसा नहीं कर सकता, किसी-किसी के साथ ही ऐसा कर पाता है।अगर खुल दिखावा करेगा तो उनसे रिश्ते बिगड़ने का डर बना रहता है।
ऐसे कई समुहों को मिलाकर एक समाज बनाया गया है और हिन्दुस्तान में बहुत से समाज हैं जिनका शादी वगैरह के अपने अलग-अलग रीति रिवाज होते हैं, जिसमें एक परिवार के लड़के और दूसरे परिवार की लड़की की शादी अपने सामाजिक रीति रिवाज से किया जाता है । लड़की जिस परिवेश में पली बढ़ी है उन सब को छोड़कर लड़के के घर में आकर उस घर के नियम कानून कायदे रहन सहन के तौर तरीके अपना लेती है और आने वाले बीस से पच्चीस सालों में पूर्ण रूप से उन तरीकों को अपने जीवन में ढ़ाल लेती है और अपने बच्चों को भी वही शिक्षा देती है जो उसके अपने घर के हिसाब से बने होते हैं जो उस घर के बुजुर्गों द्वारा बनाये गये होते हैं ।
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रिश्तों को निभाने का अपना अलग तरीका होता है लड़का अपने ससुराल में जितना कम जाएगा उतना ही उसके ससुराल वालों से घनिष्ठ सम्बंध बने रहेंगे । बहुत ज्यादा जाना या बार बार जाना उसके रिश्तों के लिये अच्छा नहीं रहेगा और वहीं लड़की जितनी अपने ससुराल में रहते हुए कम बात करेगी चाहे कोई भी आए जाए, किसी से भी कोई भी बात हो जितना कम शब्दों में बोलेगी उतना ही ज्यादा उसकी ईज्जत बनी रहेगी और वो सबकी दुलारी भी बनी रहेगी, सब उसे पसंद भी करेंगे।
लड़की को काम करना आता है तो और भी अच्छा हैं लेकिन अगर नहीं आता तब भी उससे किसी को शिकायत नहीं होगी और उसको जितना भी काम करना आता है उसे और कैसे अच्छे से किया जाता है वो भी सब बताते रहेंगे. जिससे वो हर काम में निपूर्ण हो जाए । बशर्ते उसे किसी काम के बारे में, ऐसा करना है कहने पर बुरा नहीं लगे । ऐसा उसको बीस से पच्चीस साल तक करना है यानि जब तक उसके एक बच्चे की शादी नहीं हो जाती चाहे लड़के की हो या लड़की की जैसे ही शादी हो जाती है उसके बाद तो उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाएगी और वैसे भी अब तक तो उस दिनचर्या की आदत भी बन चुकि होगी ।
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अब बात बच्चों की, अगर हम सामुहिक परिवार में रहते हैं तो बच्चों के संस्कारों के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं और बच्चे के दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची आदि उससे कैसे क्या बात करते हैं उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है क्योंकि सामुहिक परिवार में कभी-कभी बच्चे भी आपस में झ्रगड़ेंगे भी. सभी उनको प्यार भी करेंगे और डाँटेगे भी लेकिन इन सब बातों में आपको अपना कोई रोल नहीं तलाशना है । क्योंकि सामुहिक परिवार में रहने का मतलब भी यही होता है कि हर स्थिति में बच्चों को अपने आप ही व्यवहार करना चाहिये.
अगर बच्चा कोई गलत व्यवहार करेगा तो उससे बड़े बुजुर्ग हैं उनको समझने के लिए और सही रह दिखाने के लिए. और कोई बुजुर्ग उनको डांटता भी हैं तो हमे तकलीफ नहीं होनी चाहिये. तब जाकर बच्चे में अपने घर के संस्कार और अपने से बड़ों से कैसे बात करनी है समझ आएगी, लेकिन अगर उस समय हमे ये लगा कि ये लोग तो सिर्फ मेरे बच्चों से ही काम करवाते हैं या उन्हें ही डांटते रहते हैं तो उस बच्चे के भविष्य के बारे मे कोई निश्चित बात नही बता सकता और जिस दिन ये बात अपने बच्चे के लिये मन में आ जाए, उस दिन से वहां रिश्तों में जो स्थायित्व था वो समाप्त हो जाएगा ।
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अगर आप ऐसे करते हैं तो अब आपके मन में घर के बुजुर्गों के प्रति आदर भाव नहीं रहा, इसलिये ऐसी स्थिति में और ज्यादा सबका एक साथ रहना ठीक नहीं है. जिसके भी मन में ये बात आई है उसे तुरंत किसी भी स्थिति में अलग रहना शूरू कर देना चाहिये ताकि जो आदर भाव की खाई है वो और बड़ी नहीं हों और प्यार और अपनापन थोड़ा ही सही मगर बरकार रहेगा. आप उस मन मुटाव को दूर करने के लिए किसी त्यौंहारों या शादियों में प्यार से शामिल हो सकते हैं.
इन आदतों से एक औरत चाहे तो उजड़े हुए घर को वापस बना सकती है और चाहे तो हंसते खेलते परिवार को भी उजाड़ सकती है । अगर अपने व्यवहार में मधुरता व धीरज है तो वो औरत सब को एक साथ लेकर चलने की हिम्मत रखती है, ऐसी औरतों को ऊपर वाले का अदृश्य रूप से पूरा सहयोग भी मिलता है और बच्चे बड़े सभी पसंद करते हैं ।
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ऐसा जीवन जीना सब चाहते हैं लेकिन इतना धीरज और मधुरता उन्हें पसंद नहीं । ऐसे जीवन जीने के लिए हमे बहुत साडी चीजों का त्याग करना पड़ता हैं और अपनी समझदारी का भी प्रदर्शन करना पड़ता हैं, जीवन के छोटे-छोटे पड़ावों को भी सतर्कता के साथ पार करना होता हैं.
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