आज अमेरिका में 99 साल के बाद पूर्ण सूर्य ग्रहण लग रहा है, इससे पहले पूर्ण सूर्य ग्रहण का नजारा 1918 में देखने को मिला था। इस पूर्ण सूर्य ग्रहण का लाइव टेलीकास्ट अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के द्वारा किया जाएगा। इसे देखने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में तमाम तैयारियां कर ली है। वैज्ञानिकों को इस पूर्ण ग्रहण से बहुत सी उम्मीद है, उनका कहना है कि इस पूर्ण सूर्य ग्रहण पर सूर्य और ब्रह्मांड के कई राज खोलने में मदद मिल सकेगी । 1918 में पड़े सूर्य ग्रहण से भी कई शोध करने का मौका प्राप्त हुआ था।
इस सूर्य ग्रहण के लिए नासा की खास तैयारी
नेशनल सेंटर फॉर एटॉमॉस्फेरिक रिसर्च के वैज्ञानिक पहली बार गल्फस्ट्रीम वी विमान में बैठ कर इस खगोलीय घटना का 45000 फीट की ऊंचाई से अध्ययन करेंगे। इतनी ऊंचाई से उन्हें 4 मिनट अधिक समय तक सूर्य ग्रहण देखने का मौका मिलेगा और अध्ययन करने का मौका मिल सकेगा। पृथ्वी पर सूर्य ग्रहण का नजारा मात्र 3 मिनट के लिए ही दिखेगा गल्फ स्ट्रीम वी विमान अब तक कई खगोलीय घटनाओं के अध्ययन में इस्तेमाल किया जा चुका है। इसमें लगे विशाल कैमरे सूर्य की तस्वीरें लेंगे इसका अध्ययन कर वैज्ञानिक एक खगोलीय घटना के बारे में शोध कर सकेंगे।
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वैज्ञानिकों को इस सूर्य ग्रहण से सूर्य के प्रभामंडल (कोरोना) के बारे में अध्ययन करने का मौका मिलेगा। वैज्ञानिक कई वर्षों से इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हैं कि सूर्य का करोना उसकी सतह से कई गुना गर्म क्यों है सूर्य का करोना केवल सूर्य ग्रहण के समय ही दिखाई देता है। यह सूर्य ग्रहण करोना का अध्ययन एवं मौसम चक्र को बेहतर समझने के तरीके की शोध का विषय होंगा।
पूर्ण सूर्यग्रहण के इस मौके पर नासा करीब 10 से ज्यादा स्पेसक्राफ्ट, एयरक्राफ्ट और ऊंचाई पर उड़ने वाले एयर बलून की तैनाती करेगा तथा इस घटना को कबर करेगा। आज लगने वाला सूर्य ग्रहण अमेरिका के सभी प्रमुख इलाकों में नजर आएगा इसके अलावा यूरोप,उत्तर पूर्व एशिया, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक, उत्तर पश्चिम अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण से की गई खोजें
2000 वर्ष पहले ग्रीस के खगोलविद हिप्पारकस को सूर्य ग्रहण के समय पता चला था कि उत्तर-पश्चिम तुर्की में पुर्ण सूर्य ग्रहण दिख रहा है जबकि उससे 965 किलोमीटर दूर एलेक्जांड्रिआ में सूर्य के 80 फीसदी हिस्से पर ग्रहण था। इस जानकारी को लेकर उन्होंने पृथ्वी और चंद्रमा की दूरी का आकलन किया था।
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1968 में फ्रांस के वैज्ञानिक जान पियर्सन सूर्य ग्रहण देखने भारत आए थे, जिन्होंने स्पेक्ट्रोस्कोप के माध्यम से अध्ययन किया और बताया कि सूर्य का बाहरी भाग गर्म हाइड्रोजन से भरा है तथा उसी समय हीलियम की खोज की गई ।
इसके अलावा 1990 में सूर्य ग्रहण के समय वातावरण में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया गया।