प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी म्यामार के दौरे पर थे। शुक्रवार का दिन प्रधानमंत्री मोदी की म्यांमार यात्रा का आखिरी दिन था, वे यात्रा के आखिरी दिन बागान और यांगून गए। यांगून में ही अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अंतिम मुगल बादशाह शाह की मजार पर गए मजार पर उन्होंने इत्र और फूल चढ़ाये। अधिकतर भारतवासी जो म्यांमार के दौरे पर जाते हैं वह बहादुर शाह जफर की मजार पर जाना नहीं भूलते, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी 2012 में बहादुर शाह जफर की मजार पर गए थे।
बहादुर शाह जफर की मजार क्यों है खास
1837 में मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद बहादुर शाह जफर को दिल्ली की गद्दी सौंप दी गई थी, वैसे भी मुगल बादशाह अकबर के बाद मुगल साम्राज्य का अधिकतर साम्राज्य ब्रिटिशों के कब्जे में आ गया था और मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के लिए केवल शाहजहांंबाद (दिल्ली) ही राज करने के लिए रह गया था।
1857 की क्रांति तक ब्रिटिशों ने तकरीबन पूरे भारत पर अपना कब्जा जमा लिया था, जिसका परिणाम एक बड़े विद्रोह में तब्दील हो गया यानी कि 1857 के विद्रोह के रूप में लोगों का गुस्सा सामने आया। अलग-अलग प्रांतों के राजा और स्थानीय लोगों के हृदय में पहली बार आजादी की चिंगारी महसूस की गई परंतु उस विद्रोह के लिए एक केंद्रीय नेता की जरूरत थी और वह झलक बहादुर शाह जफर में देखी गई। बहादुर शाह उस समय तक बूढ़े हो चले थे, उनकी उम्र लगभग 82 साल थी, फिर भी अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उन्होंने इस नेतृत्व को स्वीकार कर लिया परंतु अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वह हार गए और अंग्रेजो द्वारा बंदी बना लिए गए। बहादुर शाह जफर ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन रंगून की जेल में ही कांटे और 7 नवंबर 1862 को बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गई।
[ये भी पढ़ें: चार साल के लिए खामोश हुई बिग बेन]
बहादुर शाह जफर को जेल के पास ही श्वेडागोन पगोडा के पास ही दफन कर दिया गया। बहादुर शाह जफर चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें दिल्ली के महरौली में कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के पास दफन किया जाए परंतु उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
बहादुर शाह जफर इतने अभागे थे कि उनके अंतिम संस्कार में 100 से भी कम लोग मौजूद थे और अंग्रेजो ने उनकी कब्र को चारो तरफ से बांस की बाढ़ और पत्तों से ढक दिया था। म्यांमार के लोगों के लिए बहादुर शाह जफर की मौत मानो एक आम आदमी की मौत थी और अंग्रेजो ने भी उनके अंतिम संस्कार को कुछ खास तवज्जो नहीं दी थी।
[ये भी पढ़ें: मानवता पर सबसे बड़ा प्रहार और कुछ यूँ तब्दील हुए जापान के दो शहर लाशो में]
बहादुर शाह जफर की मौत के 132 साल बाद 1991 में एक स्मारक की आधारशिला के लिए खुदाई के दौरान एक भूमिगत कब्र का पता चला। 3.5 फुट की गहराई में छुपी यह कब्र किसी और की नहीं बहादुर शाह जफर की ही थी। जब इस खबर की पुष्टि कर ली गई तो 1994 में बहादुर शाह जफर की दरगाह बनाई गई।
बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल बादशाह होने के साथ साथ एक अच्छे कवि और ग़ज़ल गायक थे। रंगून की जेल में कैद रहते हुए उन्होंने ढेे़रों गजलें लिखी थी। रंगून जेल के जिस कमरे में बहादुर शाह कैद थे वहां जली हुई तीलियों से दीवारों पर लिखी उनकी सैकड़ों गजलें मौजूद थी क्योंकि उन्हें लिखने के लिए कलम भी नहीं दी गई थी।
कितना है बदनसीब “ज़फ़र″ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में…