हमे पता है कि फिल्म, सिरियल्स मे दिखाए जा रहे कुछ हिस्से फेक जरूर है लेकिन हम उन फेक किरदारो को देखना बंद नही करते, बल्कि पसंद करते है. उनकी कलाकारी हमारे दिल और दिमाग पर ऐसी छा जाती है जिसको हम असलीयत मे भी निभाने का प्रयास करते है लेकिन हमारे पास उस किरदारो को करने के लिए एक अच्छे-खासे सामान की जरूरत पड़ती है.
फिल्मो और सिरियल्सो मे निभाए गए ऐसे सभी किरदारो को हम डबल रोल कहते है या फिर किसी दूसरे व्यक्ति का मुखौटा पहनकर उसकी नकल करना. साल 2012 मे आई फिल्म ‘बोल-बच्चन’ जिसमे अभिषेक बच्चन दो किरदारो को निभाते है और हमे पता भी है कि वे सब फेक है लेकिन हमे फिर भी वही किरदारो को देखने का मन करता है. जैसा फिल्म मे फिल्माया गया है.
अब फेक और मुखौटा जैसे किरदार निभाने का प्रचलन सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री मे ही नही रह गया है बल्कि वह वहाँ से निकलकर राजनीति मे भी अपनी अच्छी-खासी जगह बना चुका है. इसने राजनीति मे कब कदम रखा ये बता पाना थोड़ा मुश्किल होगा. इतना जरूर कहना होगा कि 21वी सदी के आते ही भारत और दुनिया मे फेक न्यूज का जंजाल बन गया.
फिल्मो की सतरंगी दुनिया को देखते-देखते हम भी अब राजनीति मे इसके आगमन से ग्रस्त हो चुके है. फिल्मो जैसा व्यवहार हम अब राजनीति के लिए भी कर रहे है. हमे भी वह सब अब हकीकत लग रहा है. जबकि है नही.
फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्मों मे पहले ही सूचना दे दी जाती है कि इसमे दिखाए जा रहे पात्र असली नही है तथा इनका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही है. लेकिन राजनीति मे हम इसे हकीकत मानते हुए आगे बढ़ जाते है और अपने चरम स्थान पर पहुँच जाते है जो हमे हिंसक रूप धारण करने को कहता है.
अगर देखे तो नकली या फेक न्यूज का प्रचलन फिल्म इंडस्ट्री मे 70 के दशक से ही आरंभ हो चुका था. इसी क्रम मे हम फिल्मो की फेहरिस्त भी देख सकते है जैसे राम और श्याम, किशन-कन्हैया, सीता और गीता आदि. तब इस तरह का खेल सिनेमा को दिलचस्प बनाने के लिए होता था, आज राजनीति आपको दंगाई बनाने के लिए फेक न्यूज़ का घूंट पिला रही है.
















































