संकेत मिल रहे थे कि एक और दो मई को भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद नए अध्यक्ष का चयन हो जाएगा लेकिन, अभी तक पत्ता नहीं खुला. अब दलितों, पिछड़ों और अगड़े नेताओं के बीच नेतृत्व हासिल करने की होड़ लग गई है. अपने-अपने पक्ष में समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है. हालांकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उप्र में अध्यक्ष के चयन को लेकर सभी पहलुओं का अवलोकन कर रहा है. संभव है कि जल्द ही किसी नाम की घोषणा हो जाए या फिर निकाय चुनाव निपटाने के बाद ही नई ताजपोशी हो.
अध्यक्ष पद के चयन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और संगठन महामंत्री सुनील बंसल की पसंद के साथ ही आरएसएस की सहमति भी जरूरी है. दावेदारों में कई दलित नेताओं के नाम चल रहे हैं. आगरा के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. राम शंकर कठेरिया, काशी क्षेत्र के अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य, अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष व सांसद विनोद सोनकर, प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर, उपाध्यक्ष रामनरेश रावत और केंद्र में पदाधिकारी आरसी रतन के साथ ही पूर्व विधायक मुंशी लाल गौतम का नाम चर्चा में हैं. केंद्रीय मंत्री कृष्णा राज को उप्र का नेतृत्व सौंपा जा सकता है.
पिछड़े वर्ग के नेताओं में प्रदेश उपाध्यक्ष बाबूराम निषाद और प्रदेश महामंत्री अशोक कटारिया, महराजगंज के सांसद पंकज चौधरी के नाम पर उछल रहे हैं. सवर्ण नेताओं में प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक, प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर, अश्विनी त्यागी, प्रकाश शर्मा, राकेश त्रिवेदी, सांसद शिवप्रताप शुक्ला और हरीश द्विवेदी के नाम चर्चा में हैं.
संभव है कि कोई चमत्कृत करने वाला नाम सामने आए और पहले से उसकी किसी को भनक तक न हो. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई में सहयोगियों समेत 325 सीट हासिल करके भाजपा ने एक रिकार्ड बनाया है. अब भाजपा के सामने निकाय चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 से बेहतर प्रदर्शन और सरकार से समन्वय बनाने वाले अध्यक्ष के चयन की चुनौती है. वर्ष 2016 में केशव मौर्य के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद पिछड़ों का अपार समर्थन मिला.
विधानसभा चुनाव में पिछड़ा वर्ग जिस तेजी से भाजपा से जुड़ा, उसे संभाले रखने के लिए पिछड़े नेता के हाथ में कमान देने की मजबूरी है लेकिन, दलितों के बीच संदेश देने में भी भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. ऐसे में दलितों और पिछड़ों के बीच से ही अध्यक्ष के चयन को लेकर भारतीय जनता पार्टी (पार्टी) कशमकश में है.
सवर्ण मतदाता भाजपा के परंपरागत वोटर हैं, इसलिए वह अपनी पूंजी को बांधे रखने के लिए सवर्ण को भी नेतृत्व सौंप सकती है. सरकार बनने के साथ ही यह बात बार-बार उठ रही है कि मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष पूर्वी उत्तर प्रदेश और अवध के हैं, इसलिए नेतृत्व चयन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मौका दिया जा सकता है.