जिसकी तलवार की छनक से अकबर का दिल घबराता था! वो अजर अमर वो शूरवीर वो महाराणा कहलाता था ! फीका पड़ता था तेज सूरज का, जब माथा ऊचा करता था , थी तुझमे कोई बात राणा, अकबर भी तुझसे डरता था !
हिन्दवा सूर्य महाराणा प्रताप जी की 478वीं जयंती सोनीपत युवा मोर्चा की तरफ से आज सोनीपत में पूरे हर्षोल्लास से मनाई गई,सोनीपत युवा मोर्चा के मीडिया प्रभारी ने बताया कि महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ लड़े और सैन्य लिहाज से कमजोर होने के बाद भी सिर नहीं झुकाया. जितने किस्से उनके मशहूर हैं, उतने ही उनके घोड़े ‘चेतक’ के हैं.
कई किवदंतियां भी सुनाई जाती हैं. हमारे एक मास्टर साहब तो राणा प्रताप को पढ़ाते हुए भावुक हो जाते थे. बताते थे कि राणा दोनों हाथों में भाले लेकर विपक्षी सैनिकों पर टूट पड़ते थे. हाथों में ऐसा बल था कि दो सैनिकों को एक साथ भालों की नोंक पर तान देते थे. यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ में लोग सुबह उठकर देवी-देवता को नहीं, राणा को याद करते हैंहल्दीघाटी में महाराणा बहुत घायल हो गये थे, उनके पास कोई सहायक नहीं था.
ऐसे में महाराणा ने चेतक की लगाम थामी और निकल लिए. उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, पर चेतक की रफ़्तार के सामने दोनों ढीले पड़ गए. रास्ते में एक पहाड़ी नाला बहता था. चेतक भी घायल था पर छलांग मार नाला फांद गया और मुग़ल सैनिक मुंह ताकते रह गए. लेकिन अब चेतक थक चुका था. वो दौड़ नहीं पा रहा था. महाराणा की जान बचाकर चेतक खुद शहीद हो गया, इस इस तरह उन दोनों का अटूट प्यार था वह एक दूसरे के लिए जान देने के लिए तैयार थे और जिस तरह से घोड़े चेतक नहीं है सिद्ध करके भी उन्होंने बताया महाराणा प्रताप एक बहुत ही संघर्षशील जवान थे. इस मौके पर उनके अमन राजू अनिल अमित अशोक दिनेश रमन अमन टू टू आदि कार्यकर्ता मौजूद रहे