ऐसे कड़ाके की ठंड में अगर आप किसी के ऊपर ठंडा पानी डाल दें तो आप तो जानते हैं कि आप का क्या हश्र होने वाला है. जिसके ऊपर आप पानी डालेंगे, वह आपकी पगलेती को थोड़ी सी देर में ठंडा कर देगा. दुकानदारों को भी एक ऐसी ही पगलेती लगती है जब कोई उन्हें 2000 का नोट थमा देता है. वह बार-बार अपना गल्ला देखता है और 2000 का नोट देखता है. अगर आपने उस 2000 के नोट में से केवल ₹100 का ही सामान लिया है तो उसका दिमाग और भिन्ना जाता है. बाहर तो बेचारा कुछ नहीं कह पाता मगर भीतर ही भीतर वो मोदी और तुमको इतनी गाली देता हैं कि बस तुम पूछो मत.अभी कल ही कि बात हैं जब मैं 2000 का नोट लेकर निर्माण बिहार वाले मैक्डोनल पर गया और उसका छुट्टा माँगा तो उसने बिलकुल साफ़ साफ़ कह दिया कि भाई इस नोट से हम बहुत दुखी हैं और ज्यादा अब तुम और दुखी ना करो.
अब जब रविवार के दिन भी मैक्डोनल जैसे जगह पर 2000 का छुट्टा नहीं मिल रहा तो किसी ठेले वाले से मैं क्या उम्मीद करू. एक बार कदम बढ़े भी किसी और दुकान वाले की तरफ, पर फिर पीछे ले लिए. क्या करू कोई साथ भी तो नहीं था, अगर पकड़ के पीटने लगता तो?
और इस मामले में जिसे देखो वो अपनी धुन में हैं. अब उदाहरण के तौर पर ATM को ही ले लो. जो सीधा बोल देता हैं. गरीब अंदर प्रवेश ना करे और जहां तुमने उसके साथ चतुराई दिखाई 800, 900, 1200 जैसी रकम डालकर, वही रिमाइंड करा देता हैं कि भाई मैंने पहले ही कहा था कि गरीब allow नहीं हैं.
खैर बात का निष्कर्ष इतना सा हैं कि मेट्रो से उतर अगर मेरे पास मोबाइल न हो और जेब में एक 10 का नोट और एक 2000 का नोट हो तो उनमे से 10 का नोट ही मुझे घर पहुंचा पाता हैं. वर्ना 2000 नोट तो मुझे बस सुनवाता हैं… पागल हैं क्या… पागल हैं क्या… पागल हैं क्या…