बहुत कम लोग जानते हैं कि समरसता के आदि संस्थापक, एकात्मता के प्रचंड उद्घोषक, भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक एकता के महानायक तथा अद्वैतवाद के अजेय योद्धा आदिशंकराचार्य की शिक्षा दीक्षा मध्यप्रदेश के नर्मदा तट पर स्थित ओंकारेश्वर में हुई है.लगभग 1200 वर्ष पूर्व सुदूर केरल से चलकर 8 वर्ष की आयु का बालक शंकर 2000 कि.मी. की पदयात्रा कर गुरू की खोज में श्री गुरूगोविंदपाद के आश्रम में ओंकारेश्वर पहुंचा और तीन वर्ष मे संपूर्ण शिक्षा प्राप्त कर 12 साल का बालक शंकर, आद्यगुरू शंकराचार्य बन गए उपनिषदों, ब्रम्हसूत्र एवं गीता पर भाष्य लिखा. कई दिव्य स्तोत्र एवं ग्रंथो की रचना की व भारत वर्ष की चारों दिशाओं मे चार मठ स्थापित किये.ऐसे प्रकृति के महान युगदृष्टा आद्यगुरू शंकराचार्य की 108 फुट ऊँची भव्य अष्टधातु प्रतिमा मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उनकी शिक्षा स्थली ओंकारेश्वर में ओंकार पर्वत पर स्थापित की जाएगी. सभी सामान्य जन में अादि शंकराचार्य की स्मृति व दर्शन पुनर्स्थापित हो व साथ ही प्रतिमा निर्माण हेतु सांकेतिक धातु संग्रहण भी हो, इस उद्देश्य से मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा जन अभियान परिषद के संयोजन में चार स्थानों (ओंकारेश्वर, उज्जैन, पचमठा, अमरकंटक) से एकात्म यात्रा निकाली जा रही है.उज्जैन से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में, पूज्य स्वामी परमात्मानंद सरस्वती जी महाराज के नेतृत्व में यह यात्रा प्रारंभ हुई. यात्रा का जगह जगह भव्य स्वागत हुआ, उपस्थित जन समुदाय ने रथ मे विराजित पादुकाओं का पूजन किया व प्रतिमा निर्माण हेतु ताम्रकलश भेंट करके पूज्य संतो का आशीर्वाद प्राप्त किया. चयनित स्थानों पर जन संवाद(उद्बोधन) भी हुआ साथ ही रात्रि विश्राम स्थलों पर वृक्षारोपण भी हुआ. इस यात्रा में मुझे भी रहने का एवं उद्बोधन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
[स्रोत- जीवन सिंह वाघेला]