*”स्वच्छ भारत मिशन” किसी व्यक्ति विशेष का निजी नारा नहीं है, बल्कि यह वतन के सर्वजन का संयुक्त नारा है जो भारत सरकार के प्रधानमंत्री ने भारत को गंदगी मुक्त करने के लिए दिया है।* करोड़ों-अरबों रुपया खर्च कर अनेकों प्रकार की गंदगी से राहत पाने के लिए महानगरों से लेकर गांव-ढाणियों तक अभियान चलाया जा रहा है।
कभी राजस्थान के दौरे पर निकले हमारे एक प्रधानमंत्री को मंच पर कहना पड़ा था *कि जितना पैसा विकास के लिए भेजा जाता है, उसका बीस प्रतिशत ही आमजन तक पहुंच पाता है। *किसी प्रधानमंत्री को ऐसी बात कहने की नौबत क्यों आई!?
कई बार हकीकत भावुकतावश या बुरा होता न देख पाने की हालत में मुहं से निकल ही जाती है। दु:ख तो इस बात का है ऐसे जनता के खूनपसीने की कमाई के गुलशर्रे उड़ाना और सरकारी खजाने चाट जाना, लज्जित होने की बात है देश के लिए। देखकर भी जब अनदेखा कर दिया जाता है तो और भी आमजन के लिए विचलित होने की बात हो जाती है।
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चलो, यह झमेला तो चलता ही रहेगा, ऊर्जा क्यों कर नष्ट की जाए। बात तो मैं स्वच्छ भारत मिशन की रहा था कि केंद्र सरकार के इस बहुउपयोगी अभियान को सफल कैसे बनाया जाए! जब अनामशनाम रुपए केंद्र सरकार राज्यों को इस मिशन के लिए दे रही है तो उसका दुरुपयोग क्यों कर हो !!
शारीरीक अस्वस्थता के चलते कई दिनों से बैठे बैठे ऊभ सा गया सोचा घूमकर आया जाए। अभी 24 फरवरी को एक साथी के सहयोग से हमारे कस्बे श्री विजयनगर के लिए चल पड़े। कैमरा-डायरी साथ ले लिया। कोई काम तो था नहीं, केवल इर्दगिर्द भ्रमण था। सबसे पहले गाड़ी स्टेशन की तरफ घुमाने को साथी से कहा। सामने देखा तो स्टेशन के प्रवेश द्वार से कुछ ही दूरी पर बदबूदार कचरे की ढेरी पड़ी इशारा कर रही है कि मुझे ठिकाने लगाने कई दिनों से नहीं आया।
कुछ आगे बढे तो वहां भी यही हालत। साथी को बोला बंधु इतनी दूर आए हैं तो कुछ तो तोहफा ले चलें। कैमरा ऑन किया और गंदगी/कचरे की ढेरियों को कैमरे में स्थान देना शुरू किया। यह समय श्री विजयनगर स्टेशन पर रेल के न आने और न जाने का था, बस सनाटा सा पसरा हुआ था। स्टेशन मास्टर या अन्य कर्मचारी भी नजर नहीं आया। मिल जाते तो रामाश्यामी करलेते और कचरे की हालत से अवगत करवा देते। चलो, चुपचाप गाड़ी बाजार की ओर घुमाई और मुख्य बाजार में पहुंच गए।
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दुकानों पर चहलपहल थी। ग्राहकों की आवाजाही बराबर चल रही थी। अचानक गाड़ी का टायर कचरे की ढेरी पर चढ़ गया, ढेरी दरमियानी थी। कचरा-कीचड़ पिचककर पिचकारी की तरह पास में से गुजर रहे किसी ग्रामीण राही के कपड़ों पर जा गिरा। गाड़ी रोकी तो एकबार तो उस अधेड़ ने हमारी तरफ घूरकर देखा, मगर हमनें तुरन्त माफी बोल दिया तो हाथ हिलाकर आगे निकल गया। कोई अधिक समझदार होता तो शायद गाड़ी थाने ले जाने को कह देता। बाजार में जगह जगह गंदगी का यही आलम था।
स्वच्छ भारत मिशन में किस किस बात का रोना रोया जाए! असल गंदगी तो बहुत सारे सरकार के करिंदों के दिलोदिमाग में घर कर चुकी है। यह बात भी सही है कि ਇਕ ਮੱਝ ਗਾਰੇ ਨਾਲ ਲਿਬੜੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਈ ਮੱਝਾਂ ਨੂੰ ਲਬੇੜ ਦਿਂਦੀ ਹੈ। भ्रष्टाचार की गंदगी बाहर की वास्तविक गंदगी को मिटाने में बहुत बड़ी बाधक है। प्रदेश में शौचालय निर्माण के नाम पर हर पंचायतसमिति में कोई न कोई घोटाला निकलना आम सी बात है। लीपापोती और फिर पर्दा, बस कहानी खत्म।
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आंखन देखी, कागद लेखी वाली बात है, कईयों से सच देख कर सच कहे बगैर रहा नहीं जाता। मगर सच कहे-लिखे पर कई पढ़ने वालों को न जाने मिर्ची लगना क्यों आमबात है!? किसी चौपालीजनों में एक बुजुर्ग की बारी बात करने की आई तो बोला -भाई जग बीती बताऊँ या हाड बीती कहूं? एक नौजवान बोल्या, ताऊ जग बीती सारा बतावें, पर थै हाड बीती बतायदयो नी।
सरकार ने हर जरूरतमंद नागरिक तक सस्ता, यहां तक कि मुफ्त खाद्यान्न पहुंचाने की योजना “राशन” शुरू की। जब यह सहायता सरकार दे रही है तो हर जरुरतमंद को क्यों न मिले ! हैरानी की बात है कि खाद्यान्न गेहूं की ट्रॉलियों की ट्रॉलियां आटा पीसने की चक्कियों की भेंट चढ़ जाती हैं। चोर रास्ते खोजा जाना कोई बड़ी मुश्किल नहीं समझा जाता। यहां भी “तूं डाल-डाल, मैं पाति-पाति हो रहा है।
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इन्सान के साथ इन्सान धोखा करता जा ही रहा है, लेकिन जब “मां तुल्य धरती” के साथ कोई धोखा करे तो कैसे बर्दाश्त हो!? इसकी भी एक बानगी पेश कर ही दूं, चिरमिराट तो भइया कइयों को लगेगी ही। यदि एक व्यक्ति तीन-तीन अपराध नुमा धोखा करे तो मेरे सज्जन मित्र पाठको आपको कैसा महसूस होगा!! जरूर आपमें हैरान-परेशान हो जाने के भाव उबाल खाएंगे!!
रविफसल की बिजाई का समय था, मानसून भी विचलित कर गया और नहरों का उतार-चढाव भी किसानों को परेशान कर रहा था। कृषि विभाग का भी कहना था कि जैसे भी हो समय पर रविफसलों की बिजान कर ली जाए। जितना पानी बारी मिल पाता किसान रौणी (बिजान तराई) कर लेते । एग्रीकल्चर विभाग ने किसानों की हालत को देखते हुए सर्टिफाईडबीज भरपूर सब्सिडी पर सोसायटी वितरण केंद्रों पर भेजे।
किसान बीज के लिए लम्बी कतारों में बीज के लिए खड़े नजर आने लगे। अनेकों विसंगतियां वितरण नियमों में दिखाई देने लगीं। किसी किसान का आधार कार्ड घर रह गया तो किसी की जमाबंदी में पेच अड़ गये। उधर रौणी-बत्तर सूखने का भय ! तीन चार दिन खाना पूर्ति करवाते निकाल दिए जाने लगे । लाईनों में खड़े किसानों के नाम पते रजिस्टरों में दर्ज होते रहे, और जब तक बीज मिलने का मौका आया तब तक लाईने बिखरने लगीं।
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किसान बत्तर सम्भालने में जुट गए और नकली व ऊंचे दामों पर मजबूरन बीज खुले बाजार से खरीदते रहे। जैसे भी सम्भव हो सका किसानों ने सरकारी बीज का इन्तजार छोड़ बाजारी बीज से इन्तजाम कर लिया। बीज को लेकर कलेक्टर तक भी हंगामा करते पहुंचे। उन्नत बीज समय पर न मिल पाने से किसानों को निराश भी होना पड़ा। समयानुसार रवि की फसलें-सरसों, चना, जौ और गेहूं खेतों में लहलहाती दिखने लगीं।
एक दिन आश्चर्यजनक बात सामने आई जब किसी पापी ने तीन अपराध करने की ठान ली। वह अकेला था या लम्बी कड़ी में जुड़े कई लोग थे, यह तो सम्बंधित महकमे ही जानें। पहला धोखा धरती माता के साथ जिसकी कोख से इस खाद्यान्न बीज से ढेरों खाद्यान्न पैदा होना था, और अनेकानेक भूखों की भूख मिटानी थी। दूसरा धोखा उस धरती पुत्र के साथ हुआ जिसे बीज बाबत भूखे प्यासे रह कर खाली हाथ लौटने को मजबूर होना पड़ा ।
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तीसरा धोखा जानलेवा है, आप पढ़ेंगे तो चक्कर आने सम्भाविक हैं। चिंता मुझे भी है कि मेरे प्रियजनों को अमुक चक्की के आटे से नफरत न हो जाए। जिस बीज के बैग/बोरी/पैकिंग पर बीज उत्पादन व पैकिंग संसथान द्वारा तीन तीन जगह लिखित चेतावनी छापी हो और उसमें कई भाषाओं में लिखा जाए कि यह बीज जहर उपचारित है।
बीज मुहं में न डालें, बिजाई उपरांत हाथों को साबुन से धो लें। यह बीज खाद्य के रूप में प्रयोग न करें।बीज कम्पनियों द्वारा इससे ज्यादा क्या चेतावनी दर्शाई जा सकती है। अचम्भा तो उस समय हुआ जब सैंकड़ों बीघे में बिजाई योग्य विषउपचारित बीज एक फ्लोरमिल पर पहुंचते ही पकड़ा गया। धन्य है वह सज्जन जिसे इन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर संदेह हुआ और सूचना तहसीलदार साहब को दी । दो-ढाई सौ किवंटल जहरयुक्त आटा खाने से अनेकों लोग बच गए।
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पंजाबी में कहावत है “ਸਾਂਝੀ ਬੇਬੇ ਮੁੱਕੀ, ਪਿੱਟੇ ਕੌਣ !!” बीज ट्रॉलियों में सामने है, पुलिस मौके पर है, कार्रवाई करने में लग गए हफ्तों!!? कार्रवाई तहसीलदार करे या खाद्य विभाग, सोसायटी करे या एग्रीकल्चर विभाग, ऐसा करते करते मामला ठंडा होने लगा। यह एक मामला नहीं है, न जाने कैसा-कैसा बीज खेतों में जाने की बजाय गुप्त बाजारों में पहुंच जाता है। सरसों बीज का कोल्हू में तेल निकलता होगा, वो भी poison treated seed का । दालों का बीज किरयाना बाजारों में दालके रूप में बिकता है।
मेरे प्रिय देशवासियो, “स्वच्छ भारत मिशन” में भारत भला स्वच्छ कैसे बन सकता है ऐसे हालातों में !? एक तो ये सचिवों की मेहरबानी है जो कई उल्टी-सीधी योजनाओं का खामखा रूप पेश करते रहते हैं। भला छोटे छोटे गावों में क्या जरुरत पड़ी थी सफाई कर्मचारी रखने की!? गांवों में सफाई कर्मचारी रखने का तात्पर्य लोगों को पंगु बनाना है और भ्रष्टाचार के मार्ग का विस्तार करना ही तो है। शाम हो चली मांगट भाई, गंदगी तेरे -मेरे बोलने-लिखने से खत्म होने वाली नहीं । आप भी पहले अपने मन की मैल साफ करें और टीका टिपणी से बाज आएं भाई।
कबीरा तेरी झोपड़ी गल़ कट्यां के पास,,
करेंगे सो भरेंगे तूं क्यों भयो उदास?
गाड़ी रोकिए, मेरा ठिकाना आ गया !!!
अगली कड़ी में फिर मिलेंगे।